कुंभ 1954 का हादसा: प्रयाग में आयोजन 1954 के कुंभ मेले में भीड़ की भगदड़ में 800 से अधिक लोग मारे गए, और 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे। विभिन्न स्रोतों के अनुसार त्रासदी के आंकड़े अलग-अलग हैं। यह घटना मौनी अमावस्या के मुख्य स्नान के समय हुई। उस वर्ष मेले में 4-5 मिलियन तीर्थयात्रियों ने भाग लिया था। विक्रम सेठ द्वारा 1993 में लिखे गए उपन्यास ए सूटेबल बॉय में 1954 के कुंभ मेले में हुई भगदड़ का संदर्भ है। उपन्यास में, इस घटना को "कुंभ मेला" के बजाय "पुल मेला" कहा गया है। यह घटना दो कारणों से हुई। पहला जवाहरलाल नेहरू सहित बड़ी संख्या में राजनेताओं की कुंभ मे उपस्थिति और दूसरा गंगा के द्वारा अपना मार्ग बदल लेने था और बंड (तटबंध) और शहर के करीब आ गई थी, जिससे अस्थायी कुंभ शिविर में पानी भरा गया था। दहशत में भी लोग इधर से उधर भागने लगे थे।
नासिक कुंभ 2003 में हादसा: सन् 2003 के नासिक सिंहस्थ कुंभ में अंतिम शाही स्नान के दौरान हुए हादसे में 39 श्रद्धालु मारे गए थे। 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। यह हादसा कुछ संतों द्वारा चांदी के सिक्के लुटाने के कारण हुआ था, जिसे लूटने के लिए श्रद्धालु एक-दूसरे पर टूट पड़े और भगदड़ में कई महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।