कुंभ मेले में साधुओं के 13 अखाड़ों में सिखों का निर्मल अखाड़ा भी है जो उदासीन अखाड़ा परंपराओं से जुड़ा हैं। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि निर्मल अखाड़ा एक स्वतंत्र अखाड़ा है। यह अखाड़ा सिख धर्म के सिद्धांतों और दर्शन का प्रचार करता है। निर्मल अखाड़ा कुंभ मेले का एक अभिन्न अंग है और सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है। उदासीन का शाब्दिक अर्थ है उत्+आसीन= उत् = ऊंचा उठा हुआ अर्थात ब्रह्रा में आसीन = स्थित, समाधिस्थ। यहां प्रस्तुत है छोटे उदासीन अखाड़ें के महंतों की जानकारी।
ओम् संसा स्वासे में सोया, जहां सोया तहां समाया ।
जो जाने स्वासे का भेव, आपे करता आपे देव ।
उलट गगन में चन्द्र समावे, पढ़ बीज मत्र श्रीचन्द्र सुनावे।
उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं:- 1- श्रीपंचयती उदासीन अखाड़ा: इसका मठ कृष्णा नगर कीदगंज, इलाहाबाद में स्थित है। 2- श्रीपंचायती अखाड़ा नया उदासीन: इसका मठ श्रीपंचायती अखाड़ा, नया उदासीन, कंखाल हरिद्वार में स्थित है। दूसरा मठ श्रीपंचयती अखाड़ा, नया उदासीन, 286 मुत्थीगंज, इलहाबाद में स्थित है।
विशेष: कुंभ मेले में सिखों का "निरंजनी अखाड़ा" और उससे संबंधित "निरंजनी अखाड़े का आनंद अखाड़ा" प्रमुख रूप से शामिल होते हैं। "आनंद अखाड़ा" को सिखों के धार्मिक परंपराओं के साथ जोड़ा जाता है, और यह कुंभ मेले में अन्य अखाड़ों के समान ही धार्मिक गतिविधियों में भाग लेता है। हालांकि निर्मल अखाड़ा सिखों का प्रमुख अखाड़ा माना जाता है।
सिख अखाड़ा के बारे में विशेष जानकारी:
उदासीन अखड़ा स्थापना: मध्यकाल में सरस्वती की धारा के समान क्षीण होती हुई उदासीन परम्परा को श्रीविनाशी मुनि ने पुर्नजीवन दिया तथा गुरु नानकदेवजी के बड़े पुत्र 165वें आचार्य श्रीश्रीचन्द्र ने उसे अखण्डता प्रदान की। उदासीन सम्प्रदाय के चारों धूनों और पांचों बख्शीशों; मींहा साहेबजी, भगत भगवानजी, दीवानाजी, अजीतमल्ल सोढ़ीजी, बख्तमल जीद्ध एवं दस उप बख्शीशों के उदासीन महात्माओं ने सम्पूर्ण भारत में धर्म और संस्कृति के प्रचार केन्द्रों की स्थापना की। इसी परंपरा में आगे चलकर संत निर्वाण प्रियतमदासजी हुए, जिनका उदासीन समाज को अपूर्व योगदान है। उक्त अड़ाड़े की शाखाएं 17 जगह पर है। इसका मुख्यालय श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन। कृष्णा नगर, प्रयागराज में है। इनके प्रमुख संत हैं- श्रीमान महन्त रघुमुनिजी, श्रीमहन्त महेश्वरदासजी, महन्त दुर्गादास और महन्त संतोष मुनिजी।
निर्मल अखाड़ा स्थापना: बाद में निर्मल अखाड़े की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई थी। इसे सिख धर्म के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी के शिष्यों ने स्थापित किया था। निर्मल अखाड़ा सिख परंपराओं और वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार पर केंद्रित है। यह सिख धर्म और सनातन धर्म के बीच एक सेतु का काम करता है।ALSO READ: महाकुंभ में अघोरियों का डेरा, जानिए इनकी 10 खास रोचक बातें
निर्मल अखाड़े के साधु और संन्यासी:
निर्मल अखाड़े के संत शिक्षित होते हैं और धर्मशास्त्र, वेद, पुराण, और सिख धर्मग्रंथों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। इनमें से अधिकांश साधु सिख धर्म का पालन करते हैं, लेकिन वे हिंदू धार्मिक परंपराओं का भी आदर करते हैं। निर्मल अखाड़े के साधु भगवा या सफेद वस्त्र पहनते हैं और सिर पर सिख पगड़ी बांधते हैं। ये गुरु ग्रंथ साहिब और अन्य धर्मशास्त्रों के ज्ञान के आधार पर लोगों का मार्गदर्शन करते हैं।
कुंभ मेले में भागीदारी:
निर्मल अखाड़ा भारतीय संस्कृति में सिख और सनातन परंपराओं के समन्वय का प्रतीक है। कुंभ मेले में इसकी उपस्थिति यह दर्शाती है कि यह अखाड़ा आध्यात्मिकता और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है। निर्मल अखाड़ा कुंभ मेले में 'शाही स्नान' के दौरान अपने अनुयायियों और संतों के साथ हिस्सा लेता है। यह अखाड़ा शांतिप्रिय और अध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार के लिए प्रसिद्ध है। इनके शिविरों में लंगर (मुफ्त भोजन) और आध्यात्मिक प्रवचन का आयोजन होता है।
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