किलों और गढ़ों के लिए प्रसिद्ध राजस्थान में सोमवार को कांग्रेस ने भाजपा को चुनावी युद्ध में पराजित कर दिया, लेकिन सबसे बड़े दल के तौर पर उभरने के बावजूद वे स्पष्ट बहुमत से पाँच सीटें पहले रुक गई।
राज्य की सभी दो सौ विधानसभा सीटों के लिए घोषित नतीजों के अनुसार कांग्रेस ने 96 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 78 और बसपा ने पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करते हुए छह सीटें जीती हैं। निर्दलीय 14 और अन्य ने छह सीटें जीती हैं। इन निर्दलियों में सात कांग्रेस के बागी हैं, जबकि तीन भाजपा से बगावत कर मैदान में उतरे थे।
राज घराने से ताल्लुक रखने वाली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर मरूभूमि में पार्टी का किला बचाए रखने की जिम्मेदारी थी, लेकिन उनके जोरदार प्रचार और मुंबई में 26 नवंबर के आतंकवादी हमले को लेकर कांग्रेस पर हमला बोलने की रणनीति लाभ में तब्दील नहीं हो सकी।
पार्टी की पराजय के बाद वसुंधरा ने राज्यपाल एसके सिंह को इस्तीफा सौंप दिया और पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों की मंगलवार को यहाँ प्रदेश मुख्यालय में बैठक होगी, जिसमें संभवतः नए नेता के चुनाव पर भी चर्चा होगी।
पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 120 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के हिस्से सिर्फ 56 सीटें आई थीं। उन चुनावों में बसपा के हाथ दो सफलता आई थी, जिसे पार्टी ने दो गुना से अधिक कर दिया है। कांग्रेस को बसपा के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी से नुकसान भी उठाना पड़ा है।
राज्य में विकास को मुद्दा बनाने का शुरुआत में प्रयास कर रहीं वसुंधरा ने बाद में मुख्य जोर आतंकवाद और महँगाई जैसे मुद्दों पर केंद्रित किया था। भाजपा ने अपना किला बचाने के लिए गुजरात मॉडल पर टिकट बँटवारा भी किया था और करीब एक तिहाई विधायकों का टिकट काट दिया था, जिनमें कई मंत्री भी शामिल थे।
इसका नतीजा यह हुआ कि कई कार्यकर्ता बागी होकर मैदान में कूद पड़े। हालाँकि उनमें से सफलता सिर्फ तीन को ही मिल पाई, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इन लोगों ने पार्टी को नुकसान पहुँचाया।