अकेले हैं तो क्या गम है

गायत्री शर्म
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हम भले ही दुनिया के किसी भी कोने में रहें अपनों की याद हमें हमेशा सताती है। खासकर उन मौकों पर जब सारा परिवार एक साथ होता है, पर किसी एक की कमी हम सभी को खलती है। उस वक्त हमारा दर्द सब्र के सभी बाँध तोड़कर प्रस्फुटित हो जाता है।

भाई-बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व हम सभी के लिए खुशियों की सौगात लाता है। बहनें बड़े नाज-नखरे से सज-धजकर अपने प्यारे भाइयों के पास जाती हैं और एक धागे की एक डोर से भाई से जन्म-जन्मांतर का साथ माँगती है। भाई भी शुभकामनाओं के रूप में उनकी रक्षा करने का वचन देता है।

जब सभी लोग खुश होते हैं तथा हर बहन अपने भाई से मिलती है तब उन चेहरों पर ग्रहण लग जाता है जो इस दुनिया में अकेले होते हैं। ऐसे लोग जिनके कोई भाई-बहन नहीं होते।

अभावों में मुस्कुराना और जिंदगी की मुश्किलों पर विजय पाना हर किसी के लिए आसान नहीं होता फिर भी इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अभावों के काँटों में खुशियों के फूल खिलाते हैं, जो ढाल बन जिंदगी के थपेड़ों को हँसकर सहते हैं। कुछ ऐसे ही लोगों की दास्तान जानिए जिन्होंने अभावों को गले लगाकर अपनी जिंदगी को एक नया मोड़ दिया।

आज रीना जैसी भी लड़कियाँ हैं जो अपने माँ-बाप की इकलौती संतान है। पिता की मृत्यु के बाद उनकी अर्थी को कंधा देने से लेकर अपनी बीमार माँ की जिम्मेदारियों को संभालने तक का सभी काम उसने खुशी-खुशी किया। आज वह खुद को एक कमजोर लड़की नहीं बल्कि एक जिम्मेदार लड़का मानती है। रक्षाबंधन के दिन उसके चेहरे पर उदासी नहीं बल्कि हर रोज की तरह खुशी होती है। इस दिन वह स्वयं को ही राखी बाँधकर इस त्योहार का आनंद लेती है।

8 साल की पूजा जिसे अभी जिम्मेदारी शब्द का अर्थ ही नहीं पता था। आज 3 बहनों की जिम्मेदारी उठा रही है। जन्म के 2 वर्ष बाद ही उसकी माँ उसे आशीष के रूप में सौतेली माँ दे गई थी फिर तीन वर्ष बाद एक दुर्घटना ने उससे माँ-बाप दोनों का साया छिन लिया। घर का रहा सहा सामान और रुपया कर्जदार ले गए। न घर रहा न रुपया, आज स्कूल जाने की उम्र में वह होटल में झूठे बर्तन माँजकर फुटपाथ को घर मानकर अपनी बहनों का पेट पाल रही है। रक्षाबंधन के दिन ये चारों बहनें एक-दूसरे को राखी बाँधकर सदा साथ निभाने का वादा करती हैं।

रीना और पूजा ही नहीं आज अनगिनत ऐसे लोग हैं जिन्होंने जिंदगी की मुश्किलों व संघर्षों से हार नहीं मानी। किसी के न होने की कमी अब उन्हें नहीं खलती। जिंदगी को अभी भी वे उसी जोश से जीते हैं और एक-दूसरे के साथी बनकर जीवन की बगिया में खुशियों के फूल खिलाते हैं। यही तो जिंदगी की खासियत है कि किसी के न होने पर भी यह कभी नहीं रुकती। चलती का नाम ही तो जिंदगी है।