प्रभु श्रीराम एक आदर्श शिष्य....

रामायण में तुलसीदासजी लिखते हैं कि -

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गुरु आगमनु सुनत रघुनाथा।

द्वार जाय पद नावउ माथा॥

सादर अरघ देइ घर आने।

सोरह भांति पूजि सनमाने॥

गहे चरन सिय सहित बहोरी।

बोले राम कमल कर जोरी।


राम अपने गुरु विश्वामित्र की सेवा में सदैव तत्पर रहे हैं। सीता स्वयंवर के समय राम गुरु से आज्ञा मिलने के उपरांत ही खड़े हुए और उन्हें प्रमाण करके ही धनुष उठाने को गए।

गुरु आगमन की सूचना मिलते ही श्रीराम सीता के साथ द्वार पर आकर उनका सम्मान करते हैं।

गुरु के घर आने पर राम प्रसन्नता व्यक्त करते हुए अपना घर पवित्र होने की बात कहते हैं। श्रीराम अपने गुरु से यह भी कहते हैं कि अगर आप खबर भेज देते तो मैं स्वयं आपके पास उपस्थित हो जाता।

भगवान श्रीराम द्वारा किया गया गुरु का सम्मान और गुरु के प्रति उनकी भावना अनुकरणीय है।

नई पीढ़ी के लिए प्रभु श्रीराम का चरित्र, नैतिक मूल्य और उनकी शिक्षा भारतवासियों के लिए एक श्रेष्ठ आदर्श हैं।

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