रमज़ान का महीना बड़ा बरकतों का है

Ramzan month
 
Ramzan month 2024 : रमज़ान का महीना शुरू हो चुका है। इसे इबादत, रहमत और निजात का महीना कहा जाता है। यह इस्लामी साल का नौवां महीना होता है। इस्लाम के मुताबिक़ अल्लाह ने अपने बंदों पर पांच चीज़ें फ़र्ज़ क़ी हैं, जिनमें कलमा, नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात शामिल हैं। कलमा इस्लाम की बुनियाद है। इसके बाद नमाज़ की बारी आती है।

हर मुसलमान पर दिन में पांच बार नमाज़ अदा करना फ़र्ज़ है। रमज़ान में रोज़े रखना और ज़कात देना भी फ़र्ज़ है। बहुत से लोग रमज़ान से पहले ही ज़कात निकाल देते हैं, ताकि लोग ज़रूरत का सामान घरों में भर लें और आराम से रोज़े रख सकें। इसी तरह बहुत से लोग फ़ितरा देने के लिए ईद का इंतज़ार नहीं करते, बल्कि रमज़ान के शुरू में ही इसे अदा कर देते हैं। इससे ज़रूरतमंद लोगों का रमज़ान अच्छे से गुज़र जाता है और वे ईद भी अच्छे से मना लेते हैं।
 
आसमानी किताबों का नुज़ूल : 
 
इस्लाम में माहे रमज़ान की बहुत अहमियत है, क्योंकि अल्लाह तआला ने इसी मुबारक महीने में अपने नबियों पर सहीफ़े और आसमानी किताबें नाज़िल की थीं। माहे रमज़ान में अल्लाह तआला ने अपने आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ु़रआन करीम नाज़िल किया। इससे पहले अल्लाह तआला ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर इंजील नाज़िल की थी। इंजील से पहले हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरेत नाज़िल की गई। तौरेत से पहले हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम पर ज़बूर नाज़िल की गई। बाक़ी नबियों पर सहीफ़े नाज़िल किए गए।
 
रमज़ान की फ़ज़ीलत : 
 
हदीसों में रमज़ान की बड़ी फ़ज़ीलत बयान की गई है। हज़रत सैयदना उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि रमज़ान में अल्लाह का ज़िक्र करने वालों को बख़्श दिया जाता है और माहे रमज़ान में अल्लाह तआला से मांगने वाला कभी महरूम नहीं रहता।
 
हदीसों के मुताबिक़ माहे रमज़ान में जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और दोज़ख़ के सातों दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं। इस माह में क़ब्रों से अज़ाब उठा लिया जाता है। इस महीने में शैतान को क़ैद कर दिया जाता है।  
 
हज़रत सैयदना इब्राहीम नख़ई फ़रमाते हैं कि रमज़ान के महीने में एक दिन का रोज़ा रखना एक हज़ार दिन के रोज़ों से अफ़ज़ल माना जाता है और रमज़ान के महीने में एक मरतबा तस्बीह पढ़ना इस माह के अलावा एक हज़ार मरतबा तस्बीह पढ़ने से अफ़ज़ल है और रमज़ान के महीने में एक रकअत नमाज़ पढ़ना इस महीने के अलावा एक हज़ार रकअत पढ़ने से अफ़ज़ल होता है।
 
यह भी कहा जाता है कि रमज़ान में हर नेकी का सवाब सत्तर गुना बढ़ जाता है यानी एक नेकी सत्तर नेकियों के बराबर होती है। इस महीने में इबादत करने पर बहुत ज़्यादा सवाब हासिल होता है।
 
रमज़ान का पैग़ाम :
 
रमज़ान का महीना लोगों को नेकी करने का पैग़ाम देता है। यह उन्हें तमाम तरह की बुराइयों से रोकता है। रोज़े की वजह से लोग आत्मसंयम सीखते हैं यानी वे अपने मन और इंद्रियों को वश में रखना सीख पाते हैं। ज़कात और फ़ितरे के ज़रिये वे ग़रीब व ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं, जिससे समाज में ये संदेश जाता है कि हमें अपने ज़रूरतमंद रिश्तेदारों, पड़ोसियों, यतीमों, मिसकीनों और मुसाफ़िरों की हरमुमकिन मदद करनी चाहिए।
 
अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि रमज़ान सब्र का महीना है यानी रोज़ा रखने में कुछ तकलीफ़ हो, तो इसे बर्दाश्त करें। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि रमज़ान ग़म बांटने का महीना है यानी ग़रीबों के साथ अच्छा बर्ताव किया जाए।
 
अगर दस चीज़ें अपने के लिए लाए हैं, तो दो-चार चीज़ें ग़रीबों के लिए भी लाएं। 
 
कहने का मतलब यह है कि हमें दूसरों का भी ख़्याल रखना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम तो बहुत अच्छी ज़िन्दगी बसर कर रहे हों और हमारे रिश्तेदार व पड़ोसी तकलीफ़ में हों। अगर ऐसा है तो फिर नमाज़, रोज़े और दीगर इबादत की कोई अहमियत नहीं रह जाती। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम इबादत के साथ-साथ अल्लाह की मख़लूक़ का भी ख़्याल रखें।      
 
दरअसल रोज़े का मतलब सहरी से इफ़्तारी तक भूखे प्यासे रहना नहीं है, बल्कि इस दौरान तमाम बुराइयों से ख़ुद को रोकना ही असल रोज़ा है।   
 
(लेखिका इस्लामिक स्कॉलर हैं) 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है। यहां पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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