'रोजा' देता है मानवता का संदेश

* हिन्दू-मुस्लिम दोनों के लिए खास है 'रोजा'
 
- मिर्जा जमील अहमद
 

 
माहे-रमजान में छुपा संदेश जानिए
रमजान : अल्लाह से इनाम लेने का महीना
जानिए रमजान में इबादत का महत्व
 
हिन्दू धर्म के त्योहारों में 'रोजा' अर्थात उपवास का विशेष महत्व है। उपवास के बिना कई त्योहार मनाए ही नहीं जाते। जिसमें नवरात्रि, श्रावण सोमवार, मां संतोषी के लिए शुक्रवार, हनुमानजी के लिए मंगलवार व शनिवार, हल षष्ठी, तीज, गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टमी आदि त्योहार प्रमुख हैं।
 
 

बुद्ध ने भी रखा था रोजा : 



 

हजरत मुसाने ईश्वर की तजल्ली का दीदार करने के लिए लगातार 40 दिनों तक उपवास रखे। हजरत ईसा गहन चिंतन में डूबकर येरूशलम के पास पहाड़ी पर जाकर कई दिनों तक उपवास करते थे। गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के लिए जंगल में जाकर कई दिनों तक उपवास 'रोजा' किए।
 
 

चंद्रमा पर आधारित हैं त्योहार : 



 

इस्लाम में 'रोजा' की विशेष अहमियत है। साल के 12 माह में से एक माह रोजा के लिए मुनतखब किया गया है, जिसे रमजान माह के नाम से जाना जाता है। इस माह में एक सच्चा मुसलमान दिन में न कुछ खाता है और न ही पीता है। प्रत्येक मुस्लिम त्योहार हर साल दस दिन आगे बढ़ जाता है और सभी त्योहार चंद्रमा पर आधारित है। वहीं हिन्दू त्योहारों का निर्धारण भी चंद्रमा के कृष्ण व शुक्ल पक्ष के आधार पर होता है।
 
 

नैतिकता व ईमानदारी का अहसास : 


 

रोजा दिनभर भूखा और प्यासा रहने का ही नाम नहीं है, बल्कि हरेक रोजेदार को बुराइयों से बचना चाहिए। सभी को अपनी जिम्मेदारी व कर्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी से करनी चाहिए। वहीं रोजेदारों को अहसास होता है कि भूख-प्यास क्या होती है? मुल्क में लाखों लोगों को एक जून की रोटी और स्वच्छ पानी नसीब नहीं हो रहा है। इस बात का अहसास होने से रोजेदारों में नैतिकता, इंसानियत, भाईचारा व सहयोग की भावना जागृत होती है।
 
 

एक माह खुदा के नाम : 


 

'रोजा' का वैज्ञानिक पहलू यह भी है कि भागम-भाग भरी जिंदगी में साल में एक माह मुस्लिम धर्मावलंबियों को साफ-सफाई व खुदा को तहेदिल से याद करने के लिए मिला है। इस्लाम में बीमार, कमजोर मुसाफिरों को 'रोजा' में दवाई व अन्य सुविधाएं लेने की छूट दी गई है। ऐसे रोजेदार छूटे हुए रोजे को अगले वर्ष पूरे कर सकते हैं। अच्छी सेहतमंद होने के बाद भी रोजा का पालन न करना गुनाह है।
 
 

अनाथ व गरीबों की मदद : 


 

तीस दिनों की रोजा के बाद ईदुल-फितर आता है। इस दिन घर के प्रत्येक सदस्य की ओर से दो किलो पैंतालिस ग्राम गेंहू या उसकी रकम एकत्र कर अनाथालयों या गरीबों को दान किया जाता है। लिहाजा 'रोजा' इंसानियत व मानवता का संदेश देता है।


वेबदुनिया पर पढ़ें