दोनों मां और बेटी ने माता सीता की बहुत मदद की थी। रामभक्त त्रिजटा हर मोड़ पे सीता का हौसला बनाए रखती थीं। एक बार त्रिजटा ने अपने स्वप्न में बहुत ही भयानक दृश्य देखा। उसने देखा की पूरी लंका धू-धू कर जल रही है। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। उसने यह भी देखा की इस लंका को एक वानर उड़ उड़ कर जला रहा है। यह दृश्य देखकर वह सहम गई। बाद में उसने सभी राक्षसनियों को अपना स्वप्न सुनाया।
बाद में जब हनुमानजी सीता माता को ढूंढते-ढूंढते अशोक वाटिका पहुंचे तो उन्होंने माता सीता को राम की अंगूठी दी। फिर जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर 'राम' नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया।