वाल्मीकि कृत रामायण में प्रभु श्रीराम की जीवन गाथा लिखी हुई है। श्री राम के भाई श्री लक्ष्मण एक मान योद्धा थे। आओ जानते हैं श्री लक्ष्मण जी की 10 खास बातें।
1. लक्ष्मण का परिवार : रामायण अनुसार राजा दशरथ के तीसरे पुत्र थे लक्ष्मण। उनकी माता का नाम सुमित्रा था। दशरथ की तीन पत्नियां थी। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनों रानियों को यज्ञ सिद्ध चरू दिए थे जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ। कौशल्या और कैकेयी द्वारा प्रसाद फल आधा-आधा सुमित्रा को देने से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। कौशल्या से राम और कैकेयी से भरत का जन्म हुआ। लक्ष्मण की एक बहन थीं जिसका नाम शांता था।
2. गुरु : राम और लक्ष्मण सहित चारों भाइयों के दो गुरु थे- वशिष्ठ, विश्वामित्र। विश्वामित्र दण्डकारण्य में यज्ञ कर रहे थे। रावण के द्वारा वहां नियुक्त ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे- राक्षस इनके यज्ञ में बार-बार विघ्न उपस्थित कर देते थे। विश्वामित्र अपनी यज्ञ रक्षा के लिए श्रीराम-लक्ष्मण को महाराज दशरथ से मांगकर ले आए। दोनों भाइयों ने मिलकर राक्षसों का वध किया और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हुई। विश्वामित्र ने ही राम को अपनी विद्याएं प्रदान कीं और उनका मिथिला में सीता से विवाह संपन्न कराया।
3. शेषावतार : भगवान राम को जहां विष्णु का अवतार माना गया है वहीं लक्ष्मण को शेषावतार कहा जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार शेषनाग के कई अवतारों का उल्लेख मिलता है जिनमें राम के भाई लक्ष्मण और कृष्ण के भाई बलराम मुख्य हैं। शेषनाग भगवान विष्णु की शैया है।
4. लक्ष्मण की पत्नियां : लक्ष्मण की तीन पत्नियां थीं- उर्मिला, जितपद्मा और वनमाला। लेकिन रामायण में उर्मिला को ही मान्यता प्राप्त पत्नी माना गया, बाकी दो पत्नियां की उनके जीवन में कोई खास जगह नहीं थी।
उर्मिला : वाल्मीकि रामायण के अनुसार, उर्मिला जनकनंदिनी सीता की छोटी बहन थीं और सीता के विवाह के समय ही दशरथ और सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण को ब्याही गई थीं। लक्ष्मण से इनके अंगद और चन्द्रकेतु नाम के दो पुत्र तथा सोमदा नाम की एक पुत्री उत्पन्न हुई। अंगद ने अंगदीया पुरी तथा चन्द्रकेतु ने चन्द्रकांता पुरी की स्थापना की थी।
जितपद्मा : लक्ष्मण ने मध्यप्रदेश में क्षेत्रांजलिपुर के राजा के विषय में सुना कि जो उसकी शक्ति को सह लेगा, उसी से वह अपनी कन्या का विवाह कर देगा। लक्ष्मण ने भाई की आज्ञा से राजा से प्रहार करने को कहा। प्रहार शक्ति सहकर उन्होंने शत्रुदमन राजा की कन्या जितपद्मा को प्राप्त किया। जितपद्मा को समझा-बुझाकर राम, सीता तथा लक्ष्मण नगर से चले गए।
वनमाला : महीधर नामक राजा की कन्या का नाम वनमाला था। उसने बाल्यकाल से ही लक्ष्मण से विवाह करने का संकल्प ले रखा था। लक्ष्मण के राज्य से चले जाने के बाद महीधर ने उसका विवाह अन्यत्र करना चाहा, किंतु वह तैयार नहीं हुई। वह सखियों के साथ वनदेवता की पूजा करने के लिए गई। बरगद के वृक्ष के नीचे खड़े होकर उसने गले में फंदा डाल लिया। वह बोली कि लक्ष्मण को न पाकर मेरा जीवन व्यर्थ है, अत: वह आत्महत्या करने के लिए तत्पर हो गई। संयोग से उसी समय लक्ष्मण ने वहां पर पहुंचकर उसे बचाया तथा उसे ग्रहण किया।
5. लक्ष्मण का वनवास : लक्ष्मण को वनवास नहीं हुआ था लेकिन वे प्रभु श्रीराम के बहुत प्रेम करते थे इसलिए वे भी राम के साथ वनवास में चले गए। लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई के लिए चौदह वर्षों तक पत्नी से अलग रहकर वैराग्य का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। वास्तव में लक्ष्मण का वनवास राम के वनवास से भी अधिक महान है। 14 वर्ष पत्नी से दूर रहकर उन्होंने केवल राम की सेवा को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया। लक्ष्मण के लिए राम ही माता-पिता, गुरु, भाई सब कुछ थे और उनकी आज्ञा का पालन ही इनका मुख्य धर्म था। वे उनके साथ सदा छाया की तरह रहते थे। भगवान श्रीराम के प्रति किसी के भी अपमानसूचक शब्द को ये कभी बरदाश्त नहीं करते थे।
वन में रहते हुए लक्ष्मण ने कई राक्षसों का वध किया था। साथ ही उन्होंने रावण की बहिन सुर्पणखां की नाक काट दी थी। कहते हैं कि लक्ष्मण ने 14 वर्ष के वनवास के दौरान ब्रह्मचारी रहे, अनाहार रहे और कभी सोए नहीं थे। साथ ही उन्होंने इस दौरान माता सीता के चरणों के अलावा कभी भी उनका मुख नहीं देखा था।
6. लक्ष्मण रेखा : लक्ष्मण रेखा का किस्सा रामायण कथा का महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध प्रसंग है। यहीं से वनवासी राम और लक्ष्मण की जिंदगी बदल जाती है। रामायण अनुसार वनवास के समय सीता के आग्रह के कारण भगवान राम मायावी स्वर्ण मृग (हिरण) के आखेट हेतु उसके पीछे चले जाते हैं। थोड़ी देर में सहायता के लिए राम की पुकार सुनाई देती है, तो सीता माता व्याकुल हो जाती है। वे लक्ष्मण से उनके पास जाने को कहती है, लेकिन लक्ष्मण बहुत समझाते हैं कि यह किसी मायावी की आवाज है राम की नहीं, लेकिन सीता माता नहीं मानती हैं। तब विवश होकर जाते हुए लक्ष्मण ने कुटी के चारों ओर एक रेखा खींच दी और सीता माता से कहा कि आप किसी भी दशा में इस रेखा से बाहर न आना।
लेकिन तपस्वी के वेश में आए रावण के झांसे में आकर सीता ने लक्ष्मण की खींची हुई रेखा से बाहर पैर रखा ही था कि रावण उसका अपहरण कर ले गया। उस रेखा से भीतर रावण सीता का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था, तभी से आज तक 'लक्ष्मण रेखा' नामक उक्ति इस आशय से प्रयुक्त होती है कि किसी भी मामले में निश्चित हद को पार नहीं करना है चाहिए वरना नुकसान उठाना पड़ता है।
7. लक्ष्मण मूर्च्छा : लक्ष्मण ने ही मेघनाद का वध किया था। राम-रावण युद्ध के समय मेघनाद के तीर से लक्ष्मण मूर्च्छित होकर गिर पड़े। लक्ष्मण की गहन मूर्च्छा को देखकर सब चिंतित एवं निराश होने लगे। विभीषण ने सबको सांत्वना दी। सभी ने संजीवनी बूटी की खोज में हनुमानजी को भेजा और हनुमानजी संजीवनी का पहाड़ ही उठा लाए।
पुन: युद्ध करते समय रावण ने लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार किया। लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए। लक्ष्मण की ऐसी दशा देखकर राम विलाप करने लगे। सुषेण ने कहा- 'लक्ष्मण के मुंह पर मृत्यु-चिह्न नहीं है अत: आप निश्चिंत रहिए।'
8. लखनऊ : मान्यता है कि लखनऊ शहर लक्ष्मण ने बसाया था। उत्तर भारत में लक्ष्मण को लखन भी कहते हैं। लखनऊ उस क्षेत्र में स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ प्राचीन कौशल राज्य का हिस्सा था। इसे पहले लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना जाता था, जो बाद में बदलकर लखनऊ हो गया। यहां से अयोध्या मात्र 80 मील दूरी पर स्थित है।
9. लक्ष्मण झूला : उत्तरांचल के गढ़वाल क्षेत्र के ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि सबसे पहले इसे राम के भाई लक्ष्मण ने बनवाया था। लक्ष्मण ने यह झूला जूट से बनवाया था। बाद में 1939 में इसे आधुनिक रूप दिया गया। 450 फीट लंबे लक्ष्मण झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ का मंदिर है।
10. लक्ष्मण मंदिर : लक्ष्मण के देशभर में बहुत सारे मंदिर है। एक मंदिर हेमकुंड झील के तट पर है जिसे लोकपाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर ठीक उसी जगह है, जहां भगवान राम के भाई लक्ष्मण ने रावण ने बेटे मेघनाद को मरने के बाद अपनी शक्ति को वापस पाने के लिए तप किया था। भारत के सबसे प्राचीन इटों से बने मंदिरों में से एक छत्तीसगढ़ में लक्ष्मण मंदिर महानदी के किनारे खड़ा है। दक्षिण कौसल की राजधानी श्रीपुर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्व स्थलों में एक है। यहां कभी दस हजार भिक्षु भी रहा करते थे। इस तरह लक्ष्मण के कई प्राचीन मंदिर है।