मध्यप्रदेश में साठ के दशक में श्रमिक नेता के रूप में अपनी विशिष्ठ पहचान बनाकर राज्य में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव जीतने का श्रेय हासिल करने वाले होमी दाजी अँगुली पर गिने जाने वाले स्वच्छ छवि और ईमानदार राजनेताओं में शुमार किए जाते रहेंगे।
दाजी का आज राज्य की आर्थिक राजधानी इंदौर में 82 वर्ष की आयु में इलाज के दौरान निधन हो गया। देशहित के मिशन को लेकर राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश करने वाले बिरले नेता दाजी ने अपने जीवन का अधिकांश समय श्रमिकों के कल्याण और उनके हितों को संरक्षित करने के संघर्ष में व्यतीत किया है।
पारसी समाज की जनसंख्या यहाँ अत्यधिक कम होने के बावजूद दाजी ने चुनावी राजनीति में प्रवेश करते हुए वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में इंदौर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में दाजी ने कांग्रेस के प्रत्याशी और श्रमिक नेता रामसिंह भाई को छह हजार से अधिक मतों से पराजित किया था।
इस चुनाव में जनसंघ की ओर से त्रिलोकनाथ भार्गव और सोशलिस्ट पार्टी की ओर से प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मामा बालेश्वर दयाल भी मैदान में थे। चुनाव में भार्गव को करीब 19 हजार और बालेश्वर दयाल को करीब 17 हजार मत मिले थे। जबकि दाजी को लगभग 95 हजार और रामसिंह भाई को करीब 89 हजार वोट मिले थे।
दाजी ने इससे पहले वर्ष 1957 में इंदौर दो विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। उन्होंने वर्ष 1972 के विधानसभा चुनाव में भी इस क्षेत्र से विजय हासिल की थी।
वर्ष 1967 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री डी.पी.मिश्रा जब इंदौर यात्रा में आए तो दाजी के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जोरदार तरीके से महँगाई के विरोध में प्रदर्शन कर इंदौर बंद कराया था। उस समय बंद के दौरान चाय पान तक की दुकानें लोगों ने स्वेच्छा से बंद करके विरोध में अपना पूरा समर्थन दिया था।
दाजी को इंदौर में नर्मदा का जल लाने के लिए किएगए आंदोलनों का अग्रणी नेता के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। इसके अलावा दाजी ने यहाँ महँगाई, मजदूर नीतियों और सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर प्रभावी आंदोलनों का नेतृत्व किया है।
दाजी वर्ष 1930 के आसपास इंदौर में आकर बसगए थे। कॉलेज के समय उन्होंने 16 वर्ष की आयु में वर्ष 1942 में स्वतंत्रता संग्राम के भारत छोड़ों आंदोलन में शिरकत की। वह वर्ष 1945 में कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन से जुड़ गए थे। दाजी ने वर्ष 1946 में एक मई को मजदूर दिवस पर कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी।
दाजी ने धीरे धीरे यहाँ टेक्टाइल मिलों के मजदूरों के कल्याण और हितों के संरक्षण की लड़ाई लड़कर कम्युनिस्ट पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी संघर्षशीलता को देखते हुए पार्टी ने दाजी को वर्ष 1974 से 1978 तक सचिव पद से नवाजा और वर्ष 1980 में वह कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मनोनीत किए गए।