नरेंद्र मोदी सरकार को करारा झटका देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने गोधरा कांड के बाद साल 2002 में हुए दंगों के दौरान निष्क्रियता और लापरवाही के लिए कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि इससे ‘अराजक’ स्थिति पैदा हुई।
* सरकार की निष्क्रियता से अराजक स्थिति निर्मित हुई * क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थलों को मुआवजा दे सरकार * अदालत ने की राज्य सरकार की कड़ी आलोचना
राज्य सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए अदालत ने कहा कि दंगों की रोकथाम करने के लिए गुजरात सरकार की अपर्याप्त प्रतिक्रिया और निष्क्रियता से अराजक स्थिति पैदा हुई, जो विगत कई दिनों तक बिना कमी के जारी रही। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भास्कर भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला की पीठ ने यह टिप्पणी राज्य में उस अवधि के दौरान 500 से अधिक धार्मिक ढांचों को क्षतिग्रस्त किए जाने के लिए मुआवजे का आदेश देते हुए की।
अदालत ने कहा कि राज्य अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से भी ‘लापरवाही’ हुई है क्योंकि (इस तरह की निष्क्रियता और लापरवाही से) व्यापक पैमाने पर धार्मिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया है। उसने कहा कि सरकार इस तरह के स्थलों की मरम्मत और मुआवजे के लिए जिम्मेदार है।
अदालत ने कहा कि जब सरकार ने मकानों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को तबाह किए जाने के लिए मुआवजा दिया था तो उसे धार्मिक ढांचों के लिए भी मुआवजे का भुगतान करना चाहिए।
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि राज्य के 26 जिलों के प्रमुख न्यायाधीश अपने-अपने जिलों में धार्मिक ढांचों के संबंध में मुआवजे के लिए आवेदन हासिल करेंगे और इसपर फैसला करेंगे। उनसे छह महीने के भीतर अदालत को अपना फैसला भेजने को कहा गया है। अदालत इस्लामिक रिलीफ कमेटी ऑफ गुजरात (आईआरसीजी) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में 1200 से अधिक लोग मारे गए थे और राज्य के कई हिस्सों में तबाही हुई थी। साल 2003 में आईआरसीजी की याचिका में अदालत से दंगों के दौरान धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाए जाने के लिए मुआवजा देने का सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी। यह निर्देश इस आधार पर देने की मांग की गई थी कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी अनुशंसा की थी और राज्य सरकार ने सिद्धांत रूप में सुझाव स्वीकार कर लिया था।
राज्य सरकार ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि यह संविधान के अनुच्छेद 27 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो किसी धर्म को प्रोत्साहन देने के लिए कोई भी कर लगाने से सरकार को रोकती है।
सरकार ने यह भी कहा कि दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों को बहाल करने या मरम्मत करने के लिए मुआवजे की कोई नीति नहीं है। आईआरसीजी के वकील एमटीएम हाकिम ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताकर इसकी सराहना की। इस फैसले में धार्मिक ढांचों को नुकसान पहुंचाए जाने पर मुआवजे का आदेश दिया गया है।
हाकिम ने कहा कि संभवत: यह पहला मौका है, जब अदालत ने साल 2002 के दंगों के दौरान निष्क्रियता और लापरवाही के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। दिल्ली में कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद ने कहा कि जहां तक दंगों और फर्जी मुठभेड़ों का सवाल है, तो उच्चतम न्यायालय से लेकर किसी भी अदालत में मोदी को आरोपित किया गया है।
भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि हम उच्च न्यायालय के आदेश का अध्ययन कर रहे हैं और ऐसा करने के बाद जवाब देंगे।
कांग्रेस ने मांगा मोदी का इस्तीफा : 2002 के गुजरात दंगों के दौरान ‘निष्क्रियता और अनदेखी’ के लिए राज्य सरकार को गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा फटकार लगाए जाने के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग की।
पार्टी के प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा गुजरात उच्च न्यायालय की फटकार के बाद मोदी ने मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार खो दिया है। उन्हें तत्काल इस्तीफा देना चाहिए।
अल्वी ने कहा उच्च न्यायालय ने साफ तौर पर कहा है कि गुजरात सरकार नाकाम रही और दंगों को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जिसकी वजह से कई लोग मारे गए और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया गया।
मोदी सरकार को करारा झटका देते हुए आज गुजरात उच्च न्यायालय ने 2002 दंगों के दौरान निष्क्रियता और लापरवाही के लिए कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि इससे ‘अराजक’ स्थिति पैदा हुई। (भाषा)