विद्यार्थी अंकों की दौड़ छोड़ें, शिक्षा को बनाएं सेवा का माध्यम-आचार्यश्री विद्यासागर जी

शुक्रवार, 24 जनवरी 2020 (20:17 IST)
इंदौर। शुक्रवार की दोपहर आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने तिलकनगर स्थित श्रीकृष्ण पब्लिक स्कूल की पहली मंजिल से उतरकर जैसे ही अपने कदम नीचे रखे श्रद्धालुओं में उनके दर्शनों की होड़-सी मच गई। हर कोई उनकी एक झलक अपनी आंखों में बसा लेना था तो कोई झुककर उनकी चरण धूलि अपने मस्तक पर लगा रहा था। 
 
आस्था का यह ज्वार तब भी देखने को मिला, जब महाराज श्री तिलकनगर की गलियों से विहार करते हुए चमेली पार्क पहुंचे। आचार्यश्री और उनके संघ के कुछ साधु आगे-आगे चल रहे थे और पीछे-पीछे श्रद्धालुओं का रेला। चमेली पार्क में महाराजश्री आसान पर विराजित हो गए और फिर शुरू हुआ श्रद्धालुओं के प्रश्नों का सिलसिला। उन्होंने एक-एक कर सबकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। उनकी ज्यादातर बातें शिक्षा पर ही केन्द्रित रहीं। 
 
अंकों की दौड़ छोड़ें : वेबदुनिया के प्रश्न कि 10वीं और 12वीं तक के बच्चे पढ़ाई के तनाव में आत्महत्या कर रहे हैं? इस पर महाराजश्री ने कहा- यह दुर्भाग्यपूर्ण है और इसके लिए कहीं न कहीं हमारी शिक्षा पद्धति जिम्मेदार है। जिन बच्चों को मां के अंक (गोद) में होना चाहिए, वे परीक्षा में अंकों के लिए लड़ रहे हैं।
 
उन्होंने कहा कि अभिभावक अपने बच्चों से 90 और 100 फीसदी अंकों की अपेक्षा कर रहे हैं। शिक्षण संस्थाओं का स्तर पर भी अंकों से ही परखा जा रहा है। ऐसे में बच्चों में तनाव तो बढ़ना ही है। ज्यादा अच्छा होगा कि अंकों की इस दौड़ को छोड़कर संस्कार और भारतीय शिक्षा पर जोर दिया जाए। 
शिक्षा से सेवा : महाराजश्री ने कहा कि राष्ट्र, समाज और व्यक्ति की उन्नति के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। लेकिन, शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा में ही होना चाहिए। अपनी भाषा में ही अच्छी शिक्षा दी जा सकती है। क्योंकि अंग्रेजी बोलने से पहले भी व्यक्ति पहले सोचता तो अपनी भाषा में ही है।

उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसे कई देश हैं जिन्होंने सिर्फ अपनी भाषा को अपनाया और विकास की दौड़ में भी आगे हैं। यह कहना पूरी तरह गलत है कि अंग्रेजी को अपनाकर ही तरक्की के रास्ते पर बढ़ा जा सकता है। साथ ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नौकरी ही नहीं बल्कि सेवा भी होना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि क्या हम स्वप्न अंग्रेजी में देखते हैं? नहीं तो फिर अपनी भाषा पर जोर क्यों नहीं देते? 
 
शिक्षकों का आदर करें : महाराजश्री ने वर्तमान समय में शिक्षकों के घटते सम्मान पर भी चिंता जताई। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां एक छात्र ने शिक्षक का कत्ल कर दिया। यदि यही अनुकरण यहां किया गया तो क्या करेंगे? इसके लिए समय रहते कदम उठाना चाहिए अन्यथा हमारे पास पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं रहेगा। 
 
उन्होंने कहा कि संस्कारों की कमी के चलते परिवार छिन्न-भिन्न हो रहे हैं। यदि इन्हें रोकना है तो बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ संस्कार भी देने की जरूरत है। शिक्षकों को भी चाहिए कि वे विद्यार्थियों को संस्कार और संस्कृति की शिक्षा दें। एक बड़े उद्योगपति को उद्धृत करते हुए महाराजश्री ने कहा- 'उन्होंने लिखा था कि मैं शर्मिंदा हूं, मैंने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेजा।'  
 
अपने गौरवशाली इतिहास को जानें : आचार्यश्री विद्यासागरजी ने कहा हमें अपने गौरवशाली इतिहास को भुलाना नहीं चाहिए, बल्कि उसके पन्नों को पलटते रहना चाहिए। स्वतंत्रता के समय जो उद्देश्य और आदर्श हमारे सेनानियों ने बनाए थे, उनके विचारों के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी दी जानी चाहिए। महाराजजी ने इस बात पर भी चिंता जताई कि वर्तमान समय में शिक्षा काफी खर्चीली हो गई है। 
 
पावन आशीर्वाद : संबोधन के दौरान महाराजश्री के सान्निध्य में बैठे लोगों को विद्यासागरजी का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। वेबदुनिया के प्रेसीडेंट और सीओओ पंकज जैन, वेबदुनिया के वाइस प्रेसीडेंट (डिजीटल टेक्नोलॉजी) समीर शारंगपाणी, समाजसेवी अर्पित पाटोदी ने भी महाराजश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. रेणु जैन, पूर्व कुलपति डॉ. नरेन्द्र धाकड़, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंकज शर्मा समेत अन्य गणमान्यजनों ने भी महाराजश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। 
 

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