बाल ठाकरे हालांकि अंक शास्त्र में भरोसा नहीं करते थे लेकिन वह ऐसी संख्या पसंद करते थे जिसका जोड़ नौ आता हो। संयोग की बात है कि उनका निधन दोपहर बाद 3 बजकर 33 मिनट पर हुआ। इस संख्या का जोड़ भी नौ आता है। इस किताब में उस घटना का जिक्र किया गया है जब ठाकरे ने एक मराठी अखबार की नौकरी तीन बार छोड़ी थी, जहां वह काटूर्निस्ट के तौर पर काम करते थे। पहली बार उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी क्योंकि उन्हें बैठने के लिए जो सीट दी गई थी, वह टेलीफोन के पास थी। टेलीफोन के लगातार बजते रहने से उनका ध्यान भंग होता था।
तीसरी बार ठाकरे ने उस समय नौकरी छोड़ी, जब अखबार के अन्य पत्रकारों के साथ मिलकर उन्होंने एक दैनिक शुरू करने का फैसला किया। पुस्तक में ठाकरे की विभिन्न पसंदों का भी जिक्र किया गया है। उन्हें ठंडी बीयर पसंद नहीं थी हालांकि सिगार के वह शौकीन थे।
जब शरद पवार उन्हें देखने अस्पताल गए थे तो ठाकरे ने अपने चिर-परिचित मजाकिया अंदाज में उनसे कहा था, मेरी प्रेमिका मेरी साथ नहीं है। इस प्रेमिका से उनका मतलब सिगार से था। बीमारी के कारण ठाकरे को धूम्रपान करने से मना कर दिया गया था।
हिन्दुत्व की बात करने वाले ठाकरे को अपने मुस्लिम डॉक्टर जलील पारकर में पूरा भरोसा था। पुस्तक के अनुसार, डॉ. पारकर कहते हैं कि Bal Thackeray काफी दयालु व्यक्ति थे और जीवन से भरपूर ठाकरे को प्रकृति से विशेष प्रेम था।