यूं तो आतंकी कश्मीर में राजनीतिज्ञों को आतंकवाद के शुरू से ही निशाना बनाते आए थे, पर अब उनके निशाने पर सिर्फ भाजपा नेता हैं जिनके दल को वे कश्मीर के वर्तमान हालात के लिए जिम्मेदार मानते हैं। आंकड़ों के मुताबिक इन 32 सालों में कश्मीर में 1,500 से अधिक राजनीतिक कश्मीर में मारे जा चुके हैं। और इसी प्रकार 2 सालों में 2 दर्जन से अधिक भाजपा नेता भी मारे गए। 5 अगस्त 2019 को धारा 370 हटाए जाने के बाद भाजपा नेताओं को निशाना बनाना आरंभ हुआ तो 10 जून 2020 को आतंकी भाजपा के सरपंच अजय पंडिता को मारने में कामयाब हुए थे।
अजय पंडिता की हत्या से आतंकियों ने एक ही तीर से दो निशाने लगाए थे। एक तो भाजपा कार्यकर्ताओं में दहशत फैलाई थी और दूसरा कश्मीरी पंडित समुदाय की कश्मीर वापसी पर पानी फेर दिया था। इसके बाद तो यह सिलसिला थमा ही नहीं। 8 जुलाई 2020 को बांडीपोर में आतंकियों ने भाजपा नेता वसीम बारी को उनके पिता बशीर अहमद और भाई उमर सुल्तान संग उनके घर में ही शहीद किया था। वसीम के पिता और भाई भी भाजपा के कार्यकर्ता थे। इसके लगभग 1 माह बाद 9 अगस्त 2020 को ओमपोरा बड़गाम में भाजपा नेता अब्दुल हमीद नजार आतंकी हमले में शहीद हुए।
29 अक्टूबर 2020 को कुलगाम में भाजपा के 3 कार्यकर्ताओं फिदा हुसैन यत्तु, उमर रशीद बेग और उमर रमजान हज्जाम को आतंकियों ने अगवा कर शहीद किया था। गत 29 मार्च को सोपोर में भाजपा से संबंधित 2 काउंसलर आतंकी हमले में शहीद हो गए थे। और अब उन्होंने राकेश पंडिता को मौत के घाट उतारकर भाजपा कार्यकर्ताओं को डराने का काम किया है।