Election 2022: गुजरात में 'अपनों' की नाराजगी भारी पड़ सकती है भाजपा को

गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी अपनी-अपनी रणनीति बना रही हैं तो क्षेत्रीय दलों ने भी ताल ठोंक दी है। सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाए जा रहे हैं वहीं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने लोगों से संपर्क कर नाराजगी दूर करना आरंभ कर दिया है। बिजली, पानी, शिक्षा स्वास्थ्य, विकास, राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व, रोजगार जैसे मुद्दों को लेकर पार्टियां चुनाव मैदान में हैं। इस संबंध में गुजरात में होने वाले आगामी चुनावी घमासान को लेकर प्रख्यात राजनीतिक विश्लेषक डॉ. पार्थ पटेल से वेबदुनिया की खास बातचीत। 
 
गुजरात में आगामी विधानसभा चुनाव में क्या स्थिति रहेगी?
गुजरात में भाजपा काफी मजबूत है एवं करीब 25 सालों से भाजपा शासन में रही है। केशु भाई पटेल, नरेंद्र मोदी, आनंदी बेन पटेल, विजय रूपाणी राज्य के मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं एवं अब भूपेंद्र भाई पटेल यह भूमिका निभा रहे हैं। भाजपा के गुजरात में मजबूत होने का प्रमुख कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जो कि गुजरात से ही हैं। उन्होंने गुजरात के विकास मॉडल को आगे रखकर 2014 में पूरे देश में कैंपेन चलाया था। लोगों का विकास की राजनीति में भरोसा। उन्हें वोट बैंक पॉलिटिक्स से कोई लेना-देना नहीं है। यहां पर कांग्रेस गुटबाजी के चलते तुलनात्मक रूप से कमजोर है। आज की तारीख में भाजपा ज्यादा मजबूत है और यदि चुनाव होता है तो 100 से अधिक सीटें जीत सकतीहै। 
 
भाजपा लगातार 25 साल से गुजारात में सत्ता में है एवं कांग्रेस की सीटें बढ़ रही हैं, कही ऐसा तो नहीं है कि भाजपा ऐसा सोचे कि हम तो सत्ता में हैं एवं वापस आ जाएंगे। कांग्रेस इसका फायदा उठाकर सत्ता में न आ जाए?
गुजरात में एंटी इनकम्बेंसी जैसा कुछ नही है अर्थात वर्तमान सरकार के प्रति जनता में गुस्सा नहीं है। यहां प्रो-इनकम्बेंसी चली है। अर्थात जो सत्ता में है, उसे लेकर आओ, आम जन के पास भाजपा के सिवा विकल्प नहीं है। कांग्रेस की नाकामयाबी के कारण ऐसा है। यहां 2017 में गुजरात में कास्ट बेस आंदोलन हो रहे थे, इनमें पाटीदार कम्यूनिटी का आंदोलन हो रहा था, जिसे हार्दिक पटेल लीड कर रहे थे। यह बहुत बड़ा आंदोलन था एवं इसके कारण ही उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को हटाया गया था। पाटीदार वोट बैंक जो कि हमेशा बीजेपी के साथ में रहा है वह 2017 के चुनाव में थोड़ा नाराज था। इसका असर 99 सीटों पर संतोष करना पड़ा। 
 
पाटीदारों को खुश करने के लिए भाजपा ने क्या किया है? 
पाटीदार हमेशा भाजपा के साथ रहा है। कांग्रेस में ऐसा कम ही रहा है कि पाटीदार को साथ लेकर वो आगे बढ़े हैं। नरेंद्र मोदी करीब 13 साल तक गुजारात के मुख्यमंत्री रहे एवं उन्होंने पाटीदारों को जोड़कर रखा। मोदी जी पाटीदारों का महत्व समझते हैं।  विजय रूपाणी जो कि जैन कम्यूनिटी से आते है उन्हें उस समय मुख्यमंत्री बनाया गया। गुजरात में जैन कम्यूनिटी के लोगों की संख्या बहुत कम करीब दो से तीन प्रतिषत है। इसके बाद चुनाव 2022 के ठीक पहले भूपेंद्र भाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने पाटीदारों को खुश करने की कोशिश की है। 
 
मुस्लिम वोट बैंक का गुजरात में कितना प्रभाव रहता है?
मुस्लिम वोट बैंक का गुजरात में इतना प्रभाव नहीं रहता है। अहमदाबाद के एक दो विधानसभा क्षेत्रों में इनका प्रभाव रहता है। भाजपा की मुस्लिम्स को टिकट नहीं देने की टेंडेसी रही है। उदाहरण के तौर पर यूपी में इतना बड़ा चुनाव हुआ मगर मुस्लिम को टिकट नहीं दिया गया।
 
आदिवासी वौट बैंक का क्या रवैया रहता है? 
आदिवासी वोट बैंक भी गुजरात में बहुत है एवं कई सीटों पर निर्णायक साबित होते हैं। साउथ गुजरात बेल्ट में आदिवासी वोट बैंक बहुत है। इसमें छोटा उदेपुर, पंचमहाल, गोधरा एवं दाहोद आदि हैं। यह कांग्रेस का गढ़ रहा है। कांग्रेस ने अभी  नेता प्रतिपक्ष भी आदिवासी समुदाय से बनाया है। कांग्रेस की तरफ से सुखराम राठवा अभी ट्राइबल्स को लीड कर रहे हैं। कांग्रेस को पता है कि उनकी वोट बैंक क्या है। भाजपा जहां अगड़ों के साथ रही है वहीं कांग्रेस पिछड़ों के साथ रही है। आदिवासी इलाकों में कांग्रेस का दबदबा रहा है एवं मेरा मानना है कि 2022 में भी यह सिलसिला जारी रहने की संभावना है। कांग्रेस ने प्रदेश प्रमुख ओबीसी से बनाया है। नरेश  पटेल की कांग्रेस में आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। यदि वे आते हैं तो कांग्रेस की तरफ से मुख्‍यमंत्री पद का चेहरा हो सकते हैं। 
 
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर ओबीसी वोटर्स के बारे में आप की क्या राय है?
ओबीसी वोटर्स की काफी भूमिका रहती है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जगदीश ठाकुर का नॉर्थ गुजरात में अच्छा प्रभाव है। इनमें साबरकांठा, बनासकांठा, पाटण, मेहसाणा सहित अनेक क्षेत्र में ओबीसी वोट बैंक का प्रभाव रहता है। ओबीसी वोट बैंक कांग्रेस एवं बीजेपी दोनों से मेरा मानना है कि ओबीसी में 60 प्रतिशत भाजपा एवं 40 प्रतिशत कांग्रेस के साथ रहते हैं। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी भी ओबीसी से आते हैं। 
 
गुजरात में आगामी चुनाव किसके चेहरे को लेकर लड़ा जा रहा है?
बहुत सी सीटों पर पाटीदार एवं पटेल निर्णायक हैं। इसी के चलते भूपेंद्र भाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाकर पाटीदारों को खुश किया गया एवं केवल मोदी का ही नहीं बल्कि भूपेंद्र पटेल के चेहरे पर भी आगामी चुनाव लड़ा जा रहा है। गुजरात में तो चुनाव नरेंद्र भाई के चेहरे को लेकर ही लड़ा जाता है। चाहे मुख्यमंत्री कोई भी हो, भाजपा को को पाटीदार का महत्व पता है। पाटीदार नाराज हुआ तो पिछले चुनाव में 99 पर भाजपा आ गई थी। वो तो सूरत की लगभग सभी सीटों पर भाजपा के आने से सरकार बच गई, नहीं तो कांग्रेस सत्ता में आ जाती।
2022 का चुनाव इसलिए भी दिलचस्प होगा क्योंकि इंटरनल तौर पर बीजेपी में भी बहुत नाराजगी और गुटबाजी है। जो लोग कांग्रेस से भाजपा में आए है एवं उन्हें मात्र एक साल या कम समय में ही मंत्री बना दिया गया है, इससे भी भाजपा में नाराजगी है। ऐसे बहुत सारे भाजपा के दबंग एवं नाराज लोग हैं, जिन्हें भाजपा एवं कांग्रेस की जरूरत नहीं है। जो अपने दम पर चुनाव लड़कर भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनमें जयेश रादड़िया युवा चेहरा हैं एवं उनके पिताजी विट्ठल रादड़िया कांग्रेस के बहुत दिग्गज नेता हुआ करते थे, उसके बाद वे भाजपा में शा‍मिल हो गए। जवाहर चावड़ा सौराष्ट्र से दूसरा नाम है एवं सौराष्ट्र में दो से तीन सीटों पर उनकी बहुत पकड़ है। कुंवरजी बावड़िया कोली समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे भी भाजपा से नाराज चल रहे हैं। 
 
क्या वर्तमान परिस्थति में कांग्रेस एवं भाजपा में कांटे की टक्कर है? 
वर्तमान स्थिति के अनुसार कांग्रेस एवं बीजेपी में कांटे की टक्कर नहीं है। क्योंकि कांग्रेस के पास संगठन की कमी है। चुनाव पूर्व गठबंधन यदि कांग्रेस एवं आप पार्टी में होता है तो इसका इतना असर नहीं होगा। वर्तमान में आप पार्टी कांग्रेस के नाराज लोगों को पार्टी में शामिल कर रही है। जैसे- इंद्रनील राजगुरु जो कि राजकोट का बहुत बड़ा चेहरा हैं एवं उन्होंने विजय रूपाणी के सामने चुनाव लड़ा था। अब वे आप में शामिल हो गए हैं। राजकोट के लोकल कॉरपोरेटर वरसराम सागठिया ने कांग्रेस का साथ छोड़कर आम आदमी का दामन थाम लिया है।
 
बढ़ते क्षेत्रीय दलों का फायदा या नुकसान किस पार्टी को होगा?
जितनी ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियां होंगील उतना ही फायदा भाजपा को होगा। क्योंकि भाजपा का वोट तो फिक्स है। भाजपा विरोधी विभिन्न खेमों एवं पार्टियों में जा रहे है। यूपी में यदि कांग्रेस ने मायावती की पार्टी से अलायंस किया होता तो शायद कांग्रेस को कुछ सीटों पर फायदा हो सकता था। इसलिए कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आप भाजपा की बी टीम है। 
 
यदि ज्यादा वोटिंग होती है तो उसका फायदा किसे मिलेगा? 
कई बार लोगों में गुस्सा होता है तो इसकी एंटी इन्कम्बेंसी होती है। मेरा ऐसा मानना है कि इसका प्रभाव अलग-अलग सीट पर अलग-अलग हो सकता है। इससे कांग्रेस एवं बीजेपी के नाराज वोटर्स आप में जा सकते हैं एवं अधिक वोटिंग का फायदा आम आदमी पार्टी को मिल सकता है। 
 
आगामी विधानसभा चुनाव में किस दल को कितनी सीटें मिल सकती है?
आम आदमी एवं बीटीपी 7 से 8 सीटें या अधिकतम 10 सीटें ले सकती है। 120 से अधिक सीटें भाजपा एवं 50 से 55 सीटें कांग्रेस की आ सकती है। 
 

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