याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उसके पास जाति प्रमाणपत्र था और उसका ताल्लुक अनुसूचित जनजाति समुदाय से है, इसके बावजूद उसको स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में दाखिला नहीं दिया गया और इसका यह आधार बताया गया कि उसने अपना उपनाम बदला है।
याचिकाकर्ता शांतुन हरि भारद्वाज ने एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद स्नातकोत्तर में दाखिले की मांग की थी, लेकिन अनुसचित जाति श्रेणी के तहत प्रवेश के उसके आवेदन को ठुकरा दिया गया था। उसकी दलील कि उनका ताल्लुक हिंदू-टोकरे कोली से है जो अनुसूचजित जनजाति के तहत आती है। उनका पहले का उप नाम ‘सपकाले’ था और 1999 में उन्होंने इसे बदलकर ‘भारद्वाज’ कर लिया था। (भाषा)