हुर्रियत में मतभेद, 'चाचा हड़ताली' के कैलेंडर पर तनातनी

सुरेश डुग्गर

मंगलवार, 27 सितम्बर 2016 (17:20 IST)
श्रीनगर। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी के हड़ताली कैलेंडर को लेकर अब ‘विरोध’ मुखर होने लगा है। आम नागरिक अब इससे मुक्ति चाहते हैं। वे पत्थरबाजों से भी मुक्ति चाहते हैं जिन्होंने उनका जीना मुहाल कर दिया है।
बताया जाता है कि पिछले 80 दिनों से लगातार जारी हड़ताल को लेकर अब हुर्रियत के विभिन्न गुटों में ही मतभेद पैदा होने लगे हैं। हुर्रियत कांफ्रेंस के घटक दलों ने कट्टरपंथी नेता सईद अली शाह गिलानी से हड़ताल के स्थान पर आंदोलन के लिए कोई और रास्ता अख्तियार करने को कहा है ताकि बच्चों की पढ़ाई का ख्याल रखा जाए और गरीब दिहाड़ीदारों के पेट पर लात न चले। यह विरोध सार्वजनिक तौर पर तो नहीं हुआ है पर हुर्रियत के भीतरी सूत्र इसकी पुष्टि करने लगे हैं। 
 
ऐसा ही विरोध पिछले हफ्ते उस समय हुआ था जब हड़ताली कैलेंडर को 29 सितम्बर तक बढ़ाया गया था। ऐसे में लोगों को अब उम्मीद है कि गिलानी अपने हड़ताली कैलेंडर में कुछ ‘छूट’ देने की कोशिश करें ताकि बच्चों की पढ़ाई तो कम से कम बचाई जा सके। बताया जाता है कि अप्रत्यक्ष तौर पर गिलानी ने छात्रों तथा दिहाड़ीदारों के दर्द को समझा था और उन्होंने बुद्धिजीवियों से हड़ताल का विकल्प सुझाने को सुझाव तो मांगे थे पर पत्थरबाजों ने ऐसा नहीं होने दिया था।
 
बताया जाता है कि रविवार को दोपहर दो बजे के बाद हड़ताल में दी गई छूट इसी का परिणाम था लेकिन यह पत्थरबाजों को नागवार गुजरा था। उन्होंने अपने गुस्से का इजहार भी कर दिया। मिलने वाले समाचार कहते हैं कि गुस्साए पत्थरबाजों ने गिलानी के घर पर ही पत्थर बरसा दिए हैं।
 
पिछले 80 दिनों से कश्मीरियों की ओर से पत्थरबाजों का साथ दिया जा रहा है। पर अब कश्मीरी हड़ताल से उकता गए हैं। कश्मीर के कई हिस्सों में हड़ताल करवाने वालों का विरोध हो रहा है। यह विरोध इतना खुल कर सामने तो नहीं आया है जितना वर्ष 2010 के दौरान हुआ था। पर कहा यही जा रहा है कि अगर हड़ताली कैलेंडर यूं ही जारी रहा तो यह विरोध खुल कर सड़कों पर आ सकता है। 
 
मगर अब हुर्रियत के घटक दलों द्वारा गिलानी से ऐसा ही आग्रह किए जाने से वे व्यापारी खुश हैं जिन्हें इन 80 दिनों के दौरान जबरदस्त घाटा उठाना पड़ा है। सबसे बड़ा घाटा छात्रों को उठाना पड़ रहा है जिन्हें हड़तालों के बावजूद एजूकेशन विभाग ने कोई राहत देने से इंकार करते हुए परीक्षाओं का कैलेंडर जारी कर दिया है। ऐसे में हुर्रियत पर अभिभावकों की ओर से दबाव बढ़ा है कि अगर हड़ताली कैलंेंडर यूं ही जारी रहा तो छात्रों का परीक्षा का कैलेंडर पीछे छूट ताएगा जो बच्चों के भविष्य के लिए घातक साबित होगा।
 
इतना जरूर है कि कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी कश्मीरियों पर अपना दबदबा स्थापित करने की खातिर पत्थरबाजों को अलग-थलग करना चाहते हैं पर उन्हें लग रहा है वे इसमें कामयाब नहीं हो पाएंगे क्योंकि पत्थरबाज अब गिलानी का आदेश मानने को तैयार नहीं हैं। यही कारण था कि रविवार को आंदोलन में दी गई एक दिन की छूट से पत्थरबाज इतने नाराज हो गए कि उन्होंने कथित तौर पर गिलानी के घर पर ही पथराव कर खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले। इस घटना की वैसे पुष्टि नहीं हो पाई थी।
 
हालत यह है कि पत्थरबाज और गिलानी भी अब आमने-सामने हैं। यही नहीं 80 दिनों की हड़ताल के बाद अब गिलानी के हड़ताली कैलेंडर के खिलाफ भी स्वर बुलंद होने लगे हैं। यह उन नारों से साबित होने लगा है जो कई स्थानों पर दुकानों के शटरों पर लिखे हुए नजर आने लगे हैं। कई दुकानों पर ‘हम आजादी चाहते हैं’ के नारे के आगे यह भी लिखा नजर आ रहा है ‘फ्राम स्टोन पेलटर्स’।
 
यह बात अलग है कि पत्थरबाजों की नाफरमानी और ऐसे नारों के पीछे गिलानी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का हाथ होने की दुहाई दे रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार कहती है कि आतंकी हथियार छोड़ कर पत्थरबाजों में घुस चुके हैं जो भीड़ में घुस कर सुरक्षाबलों पर गोलियां बरसा कर उन्हें उकसा रहे हैं जिसका परिणाम सुरक्षाबलों द्वारा की जाने वाली फायरिंग में मासूम कश्मीरियों की मौतों के रूप में सामने आ रहा है।

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