जम्मू। शुक्रवार को 'विश्व पर्यटन दिवस' पर विश्व के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में जहां खुशी का माहौल था वहीं कश्मीर में मातम था। 54 दिनों की हड़ताल और अघोषित कर्फ्यू से जूझ रही कश्मीर वादी में कोई पर्यटक नजर नहीं आता था। कश्मीर से टूरिस्ट गायब हुए तो अरसा बीत चुका है। अगर कुछ नजर आया था तो वे थे अघोषित कर्फ्यू को लागू करते सुरक्षाकर्मी या फिर पत्थरबाज। इन दोनों पर कश्मीर के टूरिज्म की कमाई को निगलने का दोष मढ़ा जा रहा है।
दरअसल, वर्ष 1987 का रिकॉर्ड तोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहे कश्मीर के नाम को ही कट्टरपंथियों और पत्थरबाजों ने पर्यटन के नक्शे से गायब करवा दिया था और अबकी बार बची-खुची कसर धारा 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर को सील करने की प्रक्रिया ने पूरी कर दी।
यह सच है कि वर्ष 2016 के मार्च के शुरू से ही कश्मीरियों की बांछें खिलने लगी थीं। लगता था सारे दु:ख-दर्द दूर हो जाएंगे, क्योंकि वर्ष 1987 के बाद पहली बार प्रतिदिन 40 से 50 हजार पर्यटक कश्मीर का रुख कर रहे थे। ऐसे में 30 से 50 लाख से अधिक पर्यटकों के कश्मीर आने की उम्मीद थी। अगर ऐसा होता तो 1987 का 7 लाख पर्यटकों का रिकॉर्ड टूट जाता।
पर्यटकों के आने का रिकॉर्ड तो नहीं टूटा लेकिन 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद कट्टरपंथियों के 'क्विट कश्मीर-गो इंडिया गो बैक' की मुहिम का जिम्मा पत्थरबाजों द्वारा संभाल लिए जाने की बदौलत यह रिकॉर्ड जरूर बन गया कि कश्मीर में हालात खराब होने के कारण 100 प्रतिशत लोगों ने सभी बुंकिगें रद्द करवा दीं और पिछले 2 साल से बुकिंगें करवाने वालों की संख्या ही नहीं बढ़ पाई।
बुरहान वानी की मौत के 3 साल बाद भी हालत यह है कि डल झील के विभिन्न घाटों पर खाली पड़े शिकारे और हाउस बोटों के बाहर आंखों में उम्मीद व चेहरों पर मायूसी लिए लोगों के चेहरे हालात बयान करने के लिए काफी हैं। सिर्फ हाउस बोट ही नहीं, होटल भी खाली हैं।
बाजारों में इस बार तो ईद की भीड़ भी नजर नहीं आई और न ही कोई ईद मना पाया, क्योंकि अघोषित कर्फ्यू के बीच कश्मीर पूरी तरह से हर प्रकार से पूरी दुनिया से कटा हुआ है। कश्मीर में पर्यटकों का कोई अता-पता नहीं है। यह हालत सितंबर माह के हैं, जब अगस्त माह की वीरानगी के बाद कश्मीर में पर्यटन सीजन दोबारा शुरू होता है। कश्मीर में तो इस बार जुलाई भी अफवाहबाजों द्वारा फैलाई गई हिंसा की भेंट चढ़ गया।
हाउस बोट ऑनर्स एसोसिएशन के अधिकारियों का कहना है कि अगस्त में यहां अक्सर ऑफ सीजन होता है। इसके बाद दिवाली से करीब डेढ़ माह पहले फिर से पर्यटकों की आमद शुरू हो जाती है। विदेशियों के अलावा इस दौरान यहां पश्चिम बंगाल तक के पर्यटक आते हैं, लेकिन इस बार तो कोई नहीं आ रहा, क्योंकि कश्मीर पूरी तरह से सीलबंद है।
शिकारे वाले नजीर अहमद के अनुसार वह सीजन में प्रतिदिन हजार रुपए कमा लेता था, लेकिन अब कई महीनों से वह खाली बैठा है। नईम अख्तर नामक एक होटल व्यवसायी का कहना है कि नवरात्र शुरू होने वाला है, लेकिन यहां कोई नहीं आ रहा है। आजादी के लिए यह बखेड़ा हुआ, वह शुक्रवार को भी नहीं मिली है। कुछ नेताओं को लीडरी करनी थी, कर रहे हैं और हमें भूखा मार दिया।
लाल चौक में कश्मीरी दस्तकारी की दुकान करने वाले मीर जावेद ने कहा कि बेड़ा गर्क हो ऐसे लीडरों का। कौम की बात करते हैं और कौम को ही बर्बाद कर रहे हैं। इतना अच्छा काम चल रहा था। इन लोगों ने तो हमारे मुंह का निवाला तक छीन लिया।
राज्य पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने संपर्क करने पर माना कि वर्ष 2016 के जुलाई से लेकर इस बार सितंबर माह के अंत तक वादी में करीब पौने 7 लाख पर्यटकों ने अपनी बुकिंग रद्द कराई है। हालात खराब ही हैं। इसी हालात का परिणाम है कि जम्मू-कश्मीर पर्यटन मानचित्र से गायब होने लगा है, क्योंकि पर्यटन अब सिर्फ कटरा तक ही सीमित होकर रह गया है, जहां भी पिछले कुछ दिनों से मंदी का जोर है।