सियाचिन हिमखंड : 36 सालों से जहां जारी है बेमायने की जंग, उसे अब पर्यटकों के लिए खोल दिया

सुरेश एस डुग्गर
जम्मू। यह एक चौंकाने वाली खबर है कि 36 सालों से जिस सियाचिन हिमखंड (Siachen iceberg) पर दो देशों की फौजों के बीच बेमायने की जंग जारी है उसे अब पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। जानकारी के लिए सियाचिन हिमखंड दुनिया का सबसे ऊंचाई वाला युद्धस्थल है।
 
हालांकि इस कदम को चीन के साथ सीमा पर चल रहे विवाद के साथ जोड़ते हुए कहा जा रहा है कि चीन के साथ सीमा पर तनावपूर्ण माहौल के बीच यह भारत का एक बड़ा कदम है। सेना ने सियाचिन बेस कैंप और लद्दाख में कुमार पोस्ट को नागरिकों के लिए खोल दिया है। दुनिया के सबसे ऊंचे नान-पोलर ग्लेशियर खोलने का फैसला पिछले साल अक्टूबर में ही हो चुका था। लेकिन इसे लागू करने का फैसला चीन के साथ सीमा पर तनाव के बीच उठाया गया है।
 
जानकारी के मुताबिक सियाचिन बेस कैंप लेह से करीब 225 किलोमीटर उत्तर में है। अभी यह खारदुंग ला पास और नुब्रा नदी चीन से तनाव के बीच के किनारे बनी ब्लैक टॉप रोड से जुड़ा है। बेस कैंप करीब 11,000 फीट की ऊंचाई पर है जबकि कुमार पोस्ट 15,000 फीट ऊंचाई पर।
सियाचिन जाने के लिए सेना द्वारा अनुमति दी जाएगी। इसके लिए पर्यटकों को आवेदन करना होगा, जिसके बाद वहां से अनुमति मिलेगी। अनुमति मिलने के बाद सेना की निगरानी में ही पर्यटक घूम सकेंगे। बता दें कि सियाचिन का तापमान बहुत कम रहता है और वहां आम लोगों को जाना मुश्किल भरा हो सकता है। फिलहाल लेह से 40 किलोमीटर के दायरे में ही गैर-स्थानीय लोग जा सकते हैं।
 
इतना जरूर था कि दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह है कि इस युद्धस्थल पर भारत व पाक की सेनाओं को बेमायने की जंग को लड़ते हुए इस साल 13 अप्रैल को 36 साल हो चुके हैं। यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है, जहां होने वाली जंग बेमायने है क्योंकि लड़ने वाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं हो सकता।

इस बिना अर्थों की लड़ाई के लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है, जिसने अपने मानचित्रों में पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा को एलओसी के अंतिम छोर एनजे-9842 से सीधी रेखा खींचकर कराकोरम दर्रे तक दिखाना आरंभ किया था।

ऑपरेशन मेघदूत : चिंतित भारत सरकार ने तब 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत आरंभ कर उस पाक सेना को इस हिमखंड से पीछे धकेलने का अभियान आरंभ किया जिसके इरादे इस हिमखंड पर कब्जा कर नुब्रा घाटी के साथ ही लद्दाख पर कब्जा करना था।
 
13 अप्रैल ही के दिन 1984 में कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र बलों ने अभियान छेड़ा था। इसे आप्रेशन मेघदूत का नाम दिया गया। यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सैनिक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल कर रहे थे।
ऑपरेशन मेघदूत के 36 साल बाद आज भी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लैशियर पर भारत का कब्जा है। यह विजय भारतीय सेना के शौर्य, नायकत्व, साहस और त्याग की मिसाल है। विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं।
 
ये ऑपरेशन 1984 से 2002 तक चला था यानी पूरे 18 साल तक। भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक दूसरे के सामने डटी रहीं। जीत भारत की हुई। आज भारतीय सेना 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, 3 प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर कब्जा रखती है। इस अभियान में भारत के करीब 1 हजार जवान शहीद हो गए थे। 
 
यह उत्तर पश्चिम भारत में काराकोरम रेंज में स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर 76.4 किमी लंबा है और इसमें लगभग 10,000 वर्ग किमी विरान मैदान शामिल हैं। सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चीन इस इलाके को छूती है।

ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती। चीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था। सबसे अहम ये कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है।

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