पुलिस सम्मेलन में शामिल नहीं हुई जम्मू-कश्मीर पुलिस

सुरेश एस डुग्गर

सोमवार, 21 दिसंबर 2015 (17:26 IST)
श्रीनगर। क्या सच में जम्मू-कश्मीर के वर्तमान हालात उन दिनों से अधिक बदतर हैं जब आतंकवाद पूरे यौवन पर था? क्या सच में जम्मू कश्मीर पुलिस इस काबिल नहीं है कि वह स्थिति पर काबू नहीं पा सकती है? ऐसे कई सवाल राज्य के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के उस फैसले के बाद उभरने लगे हैं जिसमें उन्होंने गुजरात के कच्छ में संपन्न हुई तीन दिवसीय 50वीं वार्षिक पुलिस कॉन्फ्रेंस में राज्य के पुलिस महानिदेशक और सीआईडी के आईजी को शिरकत करने से मना कर दिया था। 
 
मुख्यमंत्री के इस फैसले के बाद तो भाजपा के उस दावे पर भी सवाल उठने लगे हैं जिसमें वह कहती है कि सत्ता पार्टनर बनने के बाद कश्मीर शांति की ओर अग्रसर है। पर ऐसा लगता नहीं है। पहली बार ऐसा हुआ था कि गुजरात कच्छ में जिस सम्मेलन में देश के सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों ने शिरकत कर अपने अनुभव सांझा किए थे उसमें जम्मू-कश्मीर ही एकमात्र ऐसा राज्य था जो अनुपस्थित था। अभी तक यही होता आया था कि राज्य में चाहे पाकपरस्त आतंकी हिंसा कितनी भी चरम पर क्यों न रही हो पर जम्मू-कश्मीर की हाजिरी इस सम्मेलन में जरूर लगती थी। इसका लाभ भी होता आया था। 
राज्य के पुलिस महानिदेशक तथा महानिरीक्षक आतंकवाद से निपटने के अपने अनुभव सांझा कर देश के अन्य राज्यों की पुलिस को आतंकवाद से लड़ने की प्रेरणा देते आए थे और वे अन्य राज्यों की पुलिस के अनुभवों को साथ लाते थे जो उनके काम ही आते थे। पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसा भी नहीं था कि जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक के राजेंद्रन से राज्य सरकार नाराज थी। बस छोटी-छोटी बातें थीं जो मुख्यमंत्री को नागवार गुजरीं और मुख्यमंत्री ने कश्मीरियों की ‘खुशी’ की खातिर इस अवसर को उनकी भेंट चढ़ जाने दिया।
 
हालांकि आधिकारिक तौर पर इसके प्रति कोई कुछ बोलने को राजी नहीं है। पर मुख्यमंत्री के करीबी सूत्र कहते थे कि इस सम्मेलन से कुछ ही दिन पहले कुपवाड़ा से लापता हुआ तीन युवकों की घटना से खासा नाराज थे। यही नहीं जबसे मुफ्ती सईद ने मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला है वे पुलिस की कार्यप्रणाली से नाखुश नजर आ रहे हैं। खासकर कश्मीर में होने वाली उन घटनाओं को लेकर जो किसी न किसी प्रकार से अलगाववादियों से जुड़ी हुई हैं।
 
मुख्यमंत्री के इस फैसले के पीछे कारण कोई भी रहा हो पर यह जरूर है कि उनके इस फैसले से राज्य पुलिस की छवि पर दाग लगा है और राज्य पुलिस की खराब हुई छवि के लिए सत्ता पार्टनर भाजपा को भी बराबर का दोषी इसलिए ठहराया जा सकता है क्योंकि उसने भी अभी तक न ही इसका विरोध किया है और न ही कोई बयान जारी किया है।

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