पांच चरणों के मतदान के बाद सरकार बनाने के दावे शुरू

सुरेश एस डुग्गर

रविवार, 21 दिसंबर 2014 (23:53 IST)
श्रीनगर। पांच चरणों के मतदान के बाद सरकार बनाने के दावे शुरू हो चुके हैं। चुनाव बाद गठजोड़ पर भी मंथन और चर्चाएं आरंभ हो चुकी हैं। कई राजनीतिक दलों ने तो अभी से हार भी माननी आरंभ कर दी है। उनके बयान इस प्रकार के संकेत दे रहे हैं। तभी तो नेकां और भाजपा कहने लगी है कि अगर पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो वे विपक्ष में बैठेंगें। 
राजनीतिक पंडितों के अनुसार, राज्य में पीडीपी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनने की संभावनाएं प्रबल है। फिर भी सभी को 23 दिसम्बर का इंतजार है जब चुनाव परिणाम आएंगे।
 
पांच चरणों में जम्मू कश्मीर की 12वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों के बाद अब 821 प्रत्याशियों को जनता के फैसले का इंतजार है। 23 दिसंबर को मतों की गिनती के बाद आने वाले परिणामों का सभी थमी सांसों से इंतजार कर रहे हैं।
 
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और विपक्षी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के मुफ्ती मुहम्मद सईद भी उन 821 प्रत्याशियों में शामिल हैं, जिनका फैसला 87 सीटों के फैसले से जुड़ा है। उमर ने जहां दो सीटों बडगाम में बीरवाह और श्रीनगर में सोनवार से चुनाव लड़ा है, वहीं सईद दक्षिण कश्मीर में अनंतनाग सीट से दुबारा चुने जाने के लिए मैदान में उतरे थे।
 
वैसे अधिकतर विश्लेषकों की नजर उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की हंदवाड़ा सीट से चुनाव लड़ रहे पूर्व अलगाववादी नेता सज्जाद गनी लोन के चुनाव परिणाम पर है। अधिकतर विश्लेषकों और चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने राज्य में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की बात कही है। 
 
इस बात की चर्चा है कि राज्य में कई राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन हो सकता है, जो मंगलवार को आने वाले चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा।
 
भाजपा ने चुनावों में विरोधी दल कांग्रेस और क्षेत्रीय दल नेशनल कांफ्रेंस तथा पीडीपी के खिलाफ आक्रामक तरीके से प्रचार किया था। वहीं इन तीनों पार्टियों ने अपने चुनाव प्रचार में भाजपा को निशाना बनाया था। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस पिछले छह सालों से गठबंधन में सहयोगी थे और राज्य में सत्ता में थे, लेकिन दोनों पार्टियों ने अकेले चुनाव में जाने का निर्णय लिया था।
 
पीडीपी ने 2002 से 2008 के बीच कांग्रेस के सहयोग से सरकार चलाई थी, लेकिन इन चुनावों में उसने सभी विरोधियों की आलोचना की। मौजूदा चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा की तरह है।
 
भाजपा यहां पहली बार सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ रही है, तो वहीं कांग्रेस का प्रयास राज्य की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने का है, क्योंकि उसे लोकसभा चुनावों में कड़ी हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा ने आक्रामक प्रचार अभियान चलाया और उसे नाम दिया ‘मिशन 44 प्लस’। 44 वह जादुई संख्या है, जो राज्य की विधानसभा में साधारण बहुमत से सरकार बनाने के लिए जरूरी है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पार्टी के कई बड़े नेताओं ने यहां चुनावों के दौरान बड़ी रैलियां कर प्रचार की कमान संभाली थी। यह चुनाव भाजपा के लिए देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य में पैठ बनाने का मौका है। पार्टी के पास अभी राज्य में 11 विधायक हैं और इसमें होने वाली बढ़ोत्तरी मोदी की जीत के रूप में देखी जाएगी।
 
नेशनल कांफ्रेंस 2008 के चुनावों में 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसकी कोशिश है कि वह यथास्थिति बनाए रखे। पीडीपी के पास 11वीं विधानसभा में 21 विधायक थे। राज्य में सत्ता विरोधी लहर और बाढ़ पीड़ितों के गुस्से का फायदा मिलने से उसे सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने की उम्मीद है। इस बार राज्य में 66 प्रतिशत मतदान हुआ है और यह पिछले चुनावों से 5 प्रतिशत अधिक है।

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