जम्मू-कश्मीर चुनाव, बातें और वायदे ज्यादा

सुरेश एस डुग्गर

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014 (18:15 IST)
श्रीनगर। बातें तो सभी दल कर रहे थे लेकिन जब टिकटें देने की बारी आई तो अधिकतर ने मुंह फेर लिया। हालत यह है कि 1972 के चुनावों में एक बार 4 महिलाओं का विधानसभा में पहुंचने का रिकॉर्ड आज भी नहीं टूट पाया है। इस सचाई के बावजूद कि राज्य की 4 महिलाएं संसद में भी प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इतना जरूर है कि इस बार 2008 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले कुछ थोड़ी ज्यादा महिलाओं को टिकट दी गई हैं जिसे 33 फीसद आरक्षण की बातें करने वाले इसे काफी बता रहे हैं।
इस बार पांच चरणों के चुनाव के लिए कुल 29 महिलाएं उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 7 आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं तो कुल 29 महिला उम्मीदवारों में से 16 कश्मीर वादी में किस्मत आजमा रही हैं। सबसे अधिक महिलाओं को टिकट नेशनल कॉन्‍फ्रेंस ने दिए हैं। नेकां की टिकट पर कुल 6 महिलाएं मैदान में हैं जिनमें से 4 जम्मू संभाग और 2 कश्मीर वादी में मैदान में उतरी हैं।
 
भाजपा, कांग्रेस, सपा, और एडीआर की ओर से 3-3 महिलाएं मैदान में उतारी गई हैं, जबकि पीडीपी की ओर से मात्र एक महिला मैदान में है और जेकेएनपीपी की ओर से दो तथा बसपा तथा बहुजन भारतीय जनता पार्टी ने एक-एक महिला को टिकट दिया है।
 
संसद में प्रतिनिधित्व : संसद में जम्मू कश्मीर की महिलाएं चार बार राज्य का प्रतिनिधित्व तो कर चुकी हैं लेकिन इनमें से तीन अपने पतिओं के नामों के कारण ही ऐसा कर पाने में सफल रही थीं। पूर्व मुख्यमंत्री स्‍व. शेख अब्दुल्ला की विधवा अकबर जहान बेगम 1984 तथा 1977 में संसदीय चुनावों के  लिए मैदान में उतरी थीं और उन्होंने क्रमशः दो-दो लाख से अधिक मत प्राप्त किए थे। 
 
इसी प्रकार 1977 के  चुनावों में ही प्रथम बार कांग्रेस ने भी अपने एक नेता की विधवा श्रीमती पार्वती देवी को इसलिए मैदान में उतारा था क्योंकि नेशनल कॉन्‍फ्रेंस ने भी महिला उम्मीदवार खड़ा किया था और दोनों ही उम्मीदवारों को श्रीनगर तथा लद्दाख की सीटों पर सिर्फ महिला मतदाताओं के वोट हासिल हुए थे जिनसे उनकी जीत सुनिश्चित हो गई थी, लेकिन इसमें सचाई यह थी कि दोनों को टिकट मजबूरी में दिया गया था, न कि खुशी से।
 
1996 में मिले थे टिकट : 1996 तथा 1998 के चुनावों में भाजपा की ओर से क्रमशः अनंतनाग व लेह की सीट पर महिला प्रत्याशी को खड़ा किया गया था। महिला अधिकारों की बात वे बढ़-चढ़कर करते हैं, जबकि वे इस बात को भी नजरअंदाज करते रहे हैं कि राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या पचास प्रतिशत है। चुनाव क्षेत्र में कदम रखने के लिए महिलाओं को उत्साहित भी नहीं किया गया है। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों के महिला विंग बहुत ही कमजोर हैं और वे सिर्फ पुरुषों के बल पर अपने आप को घसीट रहे हैं। कमजोर होने का कारण उनमें तालमेल की कमी भी है जिसके कारण पुरुष नेता उन पर हावी होते जा रहे हैं।
 
1996 व 2002 के चुनावों में बड़ी संख्यां में महिलाएं स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में मैदान में जरूर उतरी थीं। यह बात अलग है कि उन्हें कितने वोट मिले लेकिन अपने राजनीतिक दलों से अलग होकर मैदान में कूदने वाली इन महिला प्रत्याशियों का मत था कि वे इसलिए मैदान में कूदी थीं ताकि वे अपने-अपने दलों को यह बता सकें कि वे आतंकवाद से घबराने वाली नहीं हैं। तब यह प्रथम अवसर था कि इतनी संख्या में महिलाएं चुनाव मैदान में उतरी थीं, जबकि अभी तक का इतिहास यह रहा है कि महिला प्रत्याशी स्वतंत्र रूप से भी परचे नहीं भरती रही हैं, राजनीतिक दलों द्वारा परचे भरवाना तो दूर की बात रही है।
 
1972 में चार महिलाएं पहुंचीं विधानसभा : 1972 के विधानसभा चुनावों में एक बार राज्य की चार महिलाओं ने रिकॉर्ड बनाया था, तब जैनब बेगम, हाजरा बेगम, शांता भारती और निर्मला देवी विधानसभा चुनावों को जीत विधानसभा में पहुंच गई थीं। वे सभी कांग्रेस की टिकट पर ही विधानसभा में पहुंची थीं।

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