फ्लॉप शो साबित हो रहा है चुनाव बहिष्कार कश्मीर में

सुरेश एस डुग्गर

बुधवार, 17 दिसंबर 2014 (18:42 IST)
श्रीनगर। कश्मीर में इस बार अलगाववादियों को चुनाव बहिष्कार के मुद्दे पर मुंह की खानी पड़ी है। 26 सालों के आतंकवाद के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि अलगाववादियों के बहिष्कार के आह्वान की कश्मीरी मतदाताओं ने अवहेलना की हो और वे आतंकी धमकियों के आगे न झुके हों।

यह सच है कि अलगाववादियों का चुनाव बहिष्कार इस बार फ्लॉप शो साबित हुआ है। इसके लिए अलगाववादी आप ही जिम्मेदार हैं। असल में हुर्रियत कांफ्रेंस कई गुटों में बंट चुकी है और कई गुट चुनाव बहिष्कार की मुहिम से अपने आपको दूर रखे हुए हैं। इसमें सबसे बड़े दो गुट- मीरवायज उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कांफ्रेंस और दूसरा जमायते इस्लामी भी शामिल हैं।

मीरवायज उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कांफ्रेंस अपने आपको सच्ची हुर्रियत के तौर पर पेश करती है। पर इस बार वह चुनाव बहिष्कार की मुहिम में सईद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ नहीं है।

मीरवायज का गुट सबसे बड़ा गुट माना जाता है और उसके कई घटक दल हैं। ऐसा भी नहीं है कि सईद अली शाह गिलानी का गुट कमजोर हो पर उसके साथ सभी कट्टर गुट ही शामिल हैं।

कश्मीर में सदी की सबसे भयंकर बाढ़ के बाद राहत कार्यों को प्राथमिकता मानने वाले मीरवायज उमर फारूक के गुट ने बाढ़ से प्रभावित होने वाले कश्मीरियों के पुनर्वास की जिम्मेदारी को उठाते हुए इस बार चुनाव बहिष्कार की मुहिम में शिरकत नहीं की।

उसके इस कदम ने राजनीतिक दलों को सीधा फायदा दे दिया। हालांकि जमायते इस्लामी ने भी स्पष्ट कर दिया था कि वह कश्मीरियों को कभी भी चुनाव बहिष्कार के लिए नहीं बोलेगी। नतीजा सामने है। चाहे गिलानी गुट और जेकेएलएफ जैसे अन्य गुट चुनाव बहिष्कार की मुहिम के तहत लोगों से मतदान बहिष्कार का आह्वान करते रहे, पर कश्मीरियों ने इस बार उनकी अपील पर कान नहीं धरा।

यह भी सच है कि इस बार के चुनाव बहिष्कार अभियान में वह जोश नहीं था, जो पहले के चुनावों में हुआ करता था। यही नहीं, इस बार के चुनाव बहिष्कार अभियान में सईद अली शाह गिलानी ने आप भी खुलकर शिरकत नहीं की थी। उनकी मुहिम बयान जारी करने तक सीमित रह गई थी।

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