जम्मू। अंततः ज्येष्ठ अष्टमी के अवसर पर प्रशासन ने कश्मीरी पंडितों को माता खीर भवानी की पूजा-अर्चना करने की अनुमति देने का खतरा मोल ले ही लिया। खीर, दूध, फूल चढ़ाकर कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की कामना की। कश्मीरी पंडित हर साल ज्येष्ठ अष्टमी के दिन माता के मंदिर पहुंचते हैं और माता की आराधना करते हैं। समुदाय के लोगों का मानना है कि इसी दिन माता का जन्म हुआ था और इस दिन को हर कश्मीरी पंडित पूरे श्रद्धा से मनाता है।
यहां देशभर से पहुंचे पंडितों ने मां भवानी से प्रार्थना की है कि वह पूरी दुनिया से इस महामारी का सफाया कर दें। इस वर्ष भी कोविड-19 के कारण गांदरबल स्थित खीर भवानी मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या में गिरावट नजर आई, लेकिन यहां जो सांप्रदायिक सद्भाव देखने को मिला है, वह अद्वितीय है। मां भवानी के दरबार में घाटी में रहने व देश के दूसरे राज्यों में रहने वाले काफी कश्मीरी पंडित पहुंचे हैं।
चूंकि कोरोना काल है, इसलिए अधिकांश पंडितों ने अपने अपने घरों मे ही रहकर माता की आराधना की या फिर नजदीक के मंदिर पहुंचकर माता की पूजा की। कश्मीरी पंडित महिलाओं ने दूध, खीर, फल-फूल से थाल सजाए और उनको कुंड में प्रवाहित कर कश्मीरी पंडितों की सुख-शांति के लिए कामना की। वहीं कश्मीरी पंडितों ने माता खीर भवानी से दुआ मांगी कि शीघ्र उनकी कश्मीर वापसी हो। यह लोग अपनी मिट्टी व अपनी संस्कृति से फिर जुड़ सकें।
जानकारी के लिए खीर भवानी मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर तुलमुला गांव में स्थित है। ये मंदिर मां खीर भवानी को समर्पित है। यह मंदिर कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो इस जगह की सुंदरता में चार चांद लगाते हुए नज़र आते हैं। ये मंदिर कश्मीर के हिन्दू समुदाय की आस्था को बखूबी दर्शाता है।