महाराष्ट्र चुनाव में दलबदलुओं को नकारा

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014 (19:11 IST)
मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ऐसे तो भगवा पार्टी ने अपना परचम लहरा दिया लेकिन अपने अपने राजनीतिक फायदे के लिए ऐन चुनाव के मौके पर भाजपा और शिवसेना में शामिल होने वाले कई दलबदलुओं को मुंह की खानी पड़ी।
 
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से जुड़ने वाले राकांपा के पूर्व अध्यक्ष बबनराव पचपुटे उत्तर महाराष्ट्र में श्रीगोंडा सीट से हार गए। वोटरों ने वहां एक बार फिर राकांपा उम्मीदवार पर ही अपना भरोसा जताया।
 
पूर्व कांग्रेस-राकांपा सरकार में मंत्री रहे संजय देवताले को कांग्रेस ने टिकट देने से इंकार कर दिया था जिसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए, पर वे वरोरा में शिवसेना उम्मीदवार से चुनाव हार गए।
 
कांग्रेस और राकांपा में रहे अजित घोरपाड़े भाजपा में शामिल हुए और सांगली जिले की तासगांव सीट से पूर्व गृहमंत्री आरआर पाटिल को हराने का संकल्प लिया।
 
ऐसा लगा था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर संजय पाटिल की जीत से घोरपाड़े को मदद मिलेगी। हालांकि तासगांव के वोटरों ने आरआर पाटिल में ही अपना भरोसा कायम रखा। उन्हें 22,000 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई। जिले की राजनीति में संजय को आरआर पाटिल का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है।
 
नंदुरबार जिले के नवापुर विधानसभा क्षेत्र में 2009 में शरद गवित ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। चुनाव के वक्त वे राकांपा में शामिल हो गए, लेकिन कांग्रेस नेता सुरूपसिंह नाइक ने गवित के मंसूबे पर पानी फेर दिया।
 
पहले भाजपा में रहे प्रकाश शेंडगे ने सांगली जिले में जाट निर्वाचन क्षेत्र से राकांपा के टिकट पर किस्मत आजमाने का फैसला किया। यहां भी वोटरों ने शेंडगे पर नहीं, बल्कि भाजपा उम्मीदवार को चुना।
 
सांगली के विधायक संभाजी पवार को इस बार भाजपा ने टिकट देने से इंकार कर दिया जिसके बाद उन्होंने शिवसेना से अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया, लेकिन उन्हें शिकस्त ही हाथ लगी।
 
नारायण राणे के पूर्व सहयोगी और कांग्रेस के पूर्व विधान पार्षद राजन तेली पहले राकांपा और फिर भाजपा में शामिल हुए। उन्होंने सावंतवाड़ी सीट से चुनाव लड़ा लेकिन शिवसेना के दीपक केसरकर से हार गए। दिलचस्प है कि पहले राकांपा में रहे केसरकर ने शिवसेना के टिकट पर जीत हासिल की।
 
महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व महासचिव बासवराज पाटिल नगरालक राकांपा में शामिल हो गए और निलंगा से चुनाव लड़ा लेकिन शिवेसना संभाजी निलंगेकर से चुनाव हार गए।
 
राकांपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर पूर्व कांग्रेसी नेता वसुधा देशमुख को भी अचलपुर में निर्दलीय उम्मीदवार बच्चू काडू से हार मिली। बहरहाल, पाला बदलने वाले कुछ ऐसे भी उम्मीदवार हैं जिन्हें जीत मिली।
 
हिंगना से भाजपा उम्मीदवार समीर मेघे ने राकांपा उम्मीदवार को 23,000 से ज्यादा वोटों से हराया। इस साल हुए लोकसभा चुनाव के वक्त वे कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में वर्धा सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन तब उन्हें हार मिली थी।
 
चुनाव के पहले दूसरे दलों में शामिल होने वाले राकांपा के पूर्व मंत्री उदय सामंत और संजय सवखड़े क्रमश: शिवसेना और भाजपा के टिकट पर रत्नागिरि और भुसावल सीट बचाने में कामयाब रहे।
 
पहले राकांपा में रहे और पूर्व राज्य सरकार में मंत्री रहे विजय कुमार गवित भाजपा टिकट पर नंदुरबार सीट बचाने में सफल रहे।
 
इसी तरह एक समय राहुल गांधी टीम का हिस्सा रह चुके प्रशांत ठाकुर ने भाजपा टिकट पर अपनी पनवेल सीट को बचा लिया। पूर्व राकांपा सदस्य भारती लावहेकर और मंडा म्हात्रे को भी क्रमश: वर्सोवा और बेलापुर से भाजपा टिकट पर जीत मिली। (भाषा)

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