नई दिल्ली। जदयू नेता नीतीश कुमार ने जिस तरह से भाजपा से हाथ मिलाते एक बार फिर बिहार में अपनी सरकार बना ली, उसने उनके दोस्तों और दुश्मनों समेत सभी को चकित कर दिया है। इस तरह बिहार की राजनीति में एक बार फिर दोस्तो और दुश्मनों के चेहरे बदल गए हैं। नीतीश छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं।
बिहार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले 66 वर्षीय नीतीश कुमार ने राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री पद से बुधवार शाम को इस्तीफा दे दिया था तथा सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा का समर्थन स्वीकार कर लिया था। नीतीश के इस कदम का 2019 के लोकसभा चुनाव पर गहरा असर पड़ सकता है। भाजपा को रोकने के लिए विपक्ष के बीच हुई एकजुटता को इससे धक्का लगा है।
सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद कुमार ने ‘महागठबंधन’ का नेतृत्व करते हुए विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की थी। महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस भी शामिल थी। पहली बार 24 नवंबर 2005 को राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले नीतीश ने 20 नवंबर 2015 को पांचवीं बार इस पद की शपथ ली थी। लेकिन राजद प्रमुख लालू प्रसाद के परिजन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने से यह गठबंधन मात्र दो साल ही चल पाया।
शांत, शालीन और कर्मठ स्वभाव के माने जाने वाले नीतीश कुमार अपनी पसंद और नापसंद को मजबूती से रखने के लिए पहचाने जाते हैं। लालू प्रसाद अकसर कहा करते हैं कि नीतीश के दांत मुंह में नहीं बल्कि आंत में हैं।
2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर के सहयोग से उन्होंने बिहार में 2015 का विधानसभा चुनाव लड़ा। उन्होंने विधानसभा चुनाव को बिहार की ‘अस्मिता’ के तौर पर लड़ा और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए खुद को अकेला ऐसा बिहारी बताया था जो ‘बहारी’ के खिलाफ लड़ रहा है। (भाषा)