टपरे में चल रहा है सरकारी स्कूल (वीडियो)

कीर्ति राजेश चौरसिया

सोमवार, 26 दिसंबर 2016 (14:01 IST)
मध्यप्रदेश का यह एक पहला ऐसा स्कूल है, जहां पर न तो दीवार है और न ही छत, जबकि एक शिक्षक शासन द्वारा नियुक्त किया गया है। बिजावर से जटाशंकर धाम मार्ग पर चांदा गांव में आज भी आदिवासी बाशिंदे बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। यह तो ठीक है। गांव के बच्चे अब एक शादी के मंडप जैसे टपरे में अपना भविष्य बनाने में जुटे हुए हैं।

यहां पर स्कूल के शिक्षक कहने को तो वहां पर पहली से पांचवीं तक सरकारी प्राइमरी स्कूल है, लेकिन न ही स्कूल भवन है और न ही स्कूल जैसा माहौल। इस टपरे वाले स्कूल में शासन ने एक सहायक अध्यापक नियुक्त किया गया है, जो सुबह 10 बजे पहुंचकर दोपहर बाद 4.30 बजे तक पांचों कक्षाओं के बच्चों को टपरे में ही पढ़ा रहे हैं। अध्यापक के लिए यह एक अच्छी बात है, वहीं शासन की योजनाओं के लिए तमाचा जैसा है। पिछले दिनों जटाशंकर जाते समय कलेक्टर रमेश भंडारी भी टपरे में रुके, लेकिन उसके बाद उन्होंने भी कोई ध्यान नहीं दिया है। 
 
मामला छतरपुर जिले के विधानसभा के खैराकला संकुल और पतरा ग्राम पंचायत के चांदा गांव का है। यहां इस स्कुल में 14 बच्चे पढ़ाई करते हैं। आदिवासियों के होने के कारण यहां से कोई आवाज नहीं उठाता है कि स्कूल बनवाया जाए। भवन के अभाव में कई बच्चे तो स्कूल भी छोड़ चुके हैं। पांचवीं के बाद गांव के बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। अब यह बच्चे बीच जंगल में शादी के मंडप जैसे एक टपरे में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। जटाशंकरधाम तीर्थ क्षेत्र होने के कारण यहां पर कई मंत्री और विधायक सहित अधिकारी निकलते रहते हैं और स्कूल के पास पहुंचकर फोटो भी खिंचाते है, लेकिन बिल्डिंग को लेकर कोई भी चर्चा नहीं की गई, इससे बच्चों का भविष्य बन सके।
2012 से चल रहा है स्कूल :  करीब 400 की आबादी वाले इस गांव में वर्ष 2012 में प्राइमरी स्कूल खोला गया था। स्कूल खोलने के बाद स्कूल भवन और अन्य सुविधाओं को लेकर कोई चर्चा ही नहीं की गई। इस संबंध में स्कूल में पदस्थ सहायक अध्यापक मदन गोपाल सोनी ने कई बार अफसरों को पत्र लिखा, लेकिन स्कूल भवन बनवाने को लेकर कोई चर्चा नहीं की गई। शिक्षक ने बताया कि बारिश के मौसम में बच्चे स्कूल में पढ़ते-पढ़ते ही भीग जाते है, तो भीगा बस्ता और पुस्तकें लेकर घर चले जाते है। ठंड में यहां पर बहुत ही ठंड लगती है, जंगली इलाका होने से यहां चारों तरफ से हवाएं चलती हैं, वहीं गर्मी के मौसम में बच्चों को धूप भी लगती है।
 
चार्ट और बोर्ड लेकर पहुंचते हैं बच्चे : शिक्षक मदन गोपाल सोनी हर दिन ही स्कूल में सुबह से पहुंचते हैं, जो साथ में ही एक कुर्सी, ब्लैकबोर्ड और क, ख, ग अंकित चार्ट लेकर जाते हैं। यहां पर वह एक फर्स बिछाकर बच्चों को बिठाया जाता है। फिर पांचों कक्षाओं के छात्रों को एकसाथ लगाकर गिनती, पहाड़ा और अक्षर ज्ञान सिखाते हैं। 
 
क्या कहना है कलेक्टर का : इस मामले में कलेक्टर रमेश भंडारी का कहना है कि वे एक बार इस स्कूल को देखने के लिए गए थे। गांव के लोगों की वहां पर एक ही मांग थी कि स्कूल बनवाया जाए। स्कूल भवन बनाए जाने को लेकर हम कुछ न कुछ रास्ता निकालने के प्रयास कर रहे हैं। हम इस स्कूल भवन बनाने के मामले को गंभीरता से ले रहे हैं। जल्द ही जमीन की व्यवस्था करके स्कूल बनाएंगे।

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