बारूद के ढेर पर खड़ा है रणथम्भौर दुर्ग

जयपुर। यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल रणथम्भौर दुर्ग के हमीर महल के एक कमरे में रियासतकाल से बंद बारूद के निस्तारण का मामला पिछले काफी समय से अनसुलझा पड़ा है और इससे वहां पहुंचने वाले पर्यटकों तथा पास में स्थित प्राणी उद्यान के बाघों को भी खतरा हो सकता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सूत्रों ने कहा, ‘हमारे पास बारूद के निस्तारण के उपाय नहीं हैं।’ दूसरी ओर राजस्थान राज्य धरोहर एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत का कहना है, ‘निस्तारण का उपाय उसी को करना चाहिए जिसकी संपत्ति है। यदि उनके पास निस्तारण के साधन नहीं हैं तो वे संबंधित मंत्रालय को जानकारी दें।’ 
 
उन्होंने कहा, ‘बारूद के बारे में जानकारी एएसआई ने दी है, ऐसे में निस्तारण उन्हें ही करना होगा।’ राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव (देवस्थान) अशोक शेखर ने आज कहा, ‘सवाई माधोपुर स्थित रणथम्भौर के हमीर महल के कमरे में बंद पुराने बारूद के निस्तारण के संबंध में मुख्यमंत्री ने निर्देश देते हुए कहा था कि इस संबंध में पत्र लिखकर तुरंत भारत सरकार को सूचित किया जाए। इस संबंध में केन्द्र को जल्दी ही पत्र भेजा जाएगा।’ 
 
हमीर महल के इस कमरे में रखे बारूद में अब विस्फोटक क्षमता बची है या नहीं, इस संबंध में केन्द्र या राज्य दोनों की सरकारों के अधिकारी मौन हैं। इस संबंध में सवाल करने पर राजस्थान सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि रणथम्भौर दुर्ग, राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक है, और ऐसे में उससे संबंधित कोई भी जानकारी देने में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ही सक्षम है।
 
इस पूरे मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बंद कमरे में भरे बारूद के निस्तारण में साधनों की कमी का हवाला देकर राज्य सरकार के पाले में गेंद डाल दी है जबकि राज्य सरकार ने केन्द्र को इस संबंध में पत्र लिखकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है।
 
राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण की पिछले महीने हुई बैठक में इस मुद्दे को उठाया गया और उसके बाद इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के संज्ञान में लाया गया। राजे ने इस मुद्दे को केंद्र के समक्ष उठाने और जल्द से जल्द इसके समाधान के लिए एक अधिकारी को नए सिरे से निर्देश दिया। 
 
जयपुर से करीब 178 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 1579 फुट की ऊंचाई पर बना है यह रणथम्भौर दुर्ग। दुर्ग के चारों ओर का हिस्सा राष्ट्रीय बाघ परियोजना का क्षेत्र है जिसमें करीब 55-60 बाघ हैं। अधिकारिक सूत्रों ने जनश्रुतियों के हवाले से बताया कि यादव वंश के महाराणा जयंत ने पांचवी सदी में रणथम्भौर दुर्ग का निर्माण करवाया। 
 
कुछ सन्दर्भ में इस दुर्ग के निर्माण का श्रेय 944 ईस्वी में चौहान शासक सपलदक्ष को दिया गया है। सन 1283 ईस्वी में राजा बनने वाले हम्मीरदेव को रणथम्भौर दुर्ग के महानतम शासक के रूप में जाना जाता है।
 
अधिकारिक सूत्रों के अनुसार, रणथम्भौर दुर्ग के हमीर महल के इस कमरे में बंद बारूद का मामला सबसे पहले सवाई माधोपुर में जिला स्तरीय बैठक में वर्ष 2006 में उठा था। एएसआई ने जिला प्रशासन को हमीर महल में बारूद भरे होने की सूचना देते हुए निस्तारण की गुजारिश की थी। 
 
बैठक में बारूद के निस्तारण हेतु फॉरेंसिक विज्ञान, बम निरोधक दस्ता तथा वन विभाग से संपर्क किया गया था। मामला राजस्व मंडल से जुड़ा होने के कारण राजस्व मंत्री से भी संपर्क किया गया था।
 
सूत्रों के अनुसार हमीर महल में रखे बारूद के निस्तारण का प्रयास नौ वर्ष से किया जा रहा है लेकिन विभागों में आपसी समन्वय की कमी के कारण यह अभी तक लंबित ही है।
 
इस संबंध में प्रयासरत गैर सरकारी संगठन रणथम्भौर विचार समिति के मानद सचिव सूरज जिददी का कहना है, ‘हमीर महल के कमरे में बंद बारूद के निस्तारण में भारत सरकार को कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं पिछले 16 वर्षों से इसे लेकर राज्य और भारत सरकार को कितनी ही बार पत्र लिख चुका हूं। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।’
 
इस संबंध में मेनका गांधी के स्वयंसेवी संगठन पीपुल्स फार एनीमल्स (पेटा) के प्रदेश अध्यक्ष बाबू लाल जाजू का कहना है कि बारूद का निस्तारण जल्दी होना आवश्यक है।
 
उनका कहना है, ‘रणथम्भौर उद्यान में बहुत से बाघ हैं और उन्हें देखने के लिए हजारों देशी-विदेशी पर्यटक रोज वहां जाते हैं। ऐसे में बारूद निस्तारण की दिशा में कार्य नहीं किए जाने से यह किसी दिन इंसान और जानवर दोनों के जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है।’ (भाषा)

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