शिवसेना ने किया केंद्र सरकार को आगाह, कहा- महंगाई पर लगाम लगाए
गुरुवार, 16 जनवरी 2020 (15:23 IST)
मुंबई। शिवसेना ने जरूरी सामान के बढ़ते दाम को लेकर गुरुवार को केंद्र की आलोचना करते हुए कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में जिन्होंने 'महंगाई डायन खाए जात है' का प्रचार करके सत्ता हासिल की, उनके राज में यही महंगाई डायन फिर से आम जनता की गर्दन पर बैठ गई है। उसने आगाह किया कि अगर महंगाई पर लगाम नहीं लगाई गई तो लोग राजग सरकार के खिलाफ हो जाएंगे।
शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में लिखे एक संपादकीय में कहा गया है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार संशोधित नागरिकता कानून जैसा विधेयक लाने में व्यस्त थी जबकि सब्जियों व अन्य खाद्य सामग्रियों के बढ़ते दाम और नौकरियों की कमी जैसे मुद्दों पर वह चुप रही।
इसमें कहा गया है कि देश में आम आदमी महंगाई की मार झेल रहा है, खासतौर से खुदरा क्षेत्र में। अगर केंद्र महंगाई बढ़ने से रोकने में नाकाम रहता है तो उसे आगाह रहना चाहिए कि लोग सरकार के खिलाफ हो जाएंगे। शिवसेना ने देश की वृद्धि दर के लगातार गिरने के लिए केंद्र की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया।
उसने पूछा कि पश्चिम एशिया में संघर्ष, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध शुरू होने का मंडरा रहा डर तत्कालीन मुद्दे हैं, लेकिन मौजूदा सरकार की नीतियों का क्या, जो भाजपा के लगातार 2 बार लोकसभा चुनाव जीतने के बावजूद अर्थव्यवस्था के चरमराने और खुदरा महंगाई बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है?
पार्टी ने कहा कि 2014 में जिन्होंने 'महंगाई डायन खाए जात है' का प्रचार करके सत्ता हासिल की, उनके राज में यही महंगाई डायन फिर से आम जनता की गर्दन पर बैठ गई है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी ने कहा कि अच्छे दिन जब आएंगे, तब आएंगे लेकिन इस महंगाई को देखते हुए आम जनता के जीवन में कम से कम पहले जो ठीक दिन थे, वही ले आओ। उसने सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) जैसे फैसलों को लेकर केंद्र की आलोचना की।
शिवसेना ने कहा कि सीएए और एनआरसी से देश में नौकरियां पैदा नहीं होने जा रहीं। नई नौकरियां पैदा करने की योजनाएं नहीं हैं जबकि जो कुछ लोग अभी काम कर रहे हैं, उन्हें भरोसा नहीं है कि उनकी नौकरी कब तक रहेगी? उसने तंज कसते हुए कहा कि जो लोग ऐसे मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें भक्त लोग देशविरोधी ठहराने के लिए तैयार रहते हैं।
उसने कहा कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी नामक संस्थान ने कहा है कि 10 राज्यों में बेरोजगारी दर सबसे अधिक है। इनमें से 6 राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकार है और इस पर केंद्र की प्रतिक्रिया क्या है? केंद्र ने इन मुद्दों पर मौन धारण किया हुआ है।