विवाह का यह सुखद बंधन मात्र अग्नि के इर्द-गिर्द घूमने की औपचारिकता नहीं, बल्कि एक-दूसरे के साथ कुछ अनकही, अनलिखी बातों का प्रण लेना भी होता है जिसमें जीवन संघर्ष में, सुख-दुःख में साथ निभाने की, समर्पण से एक-दूसरे का सम्मान करने की, आपस की भावनाओं को समझने की, सबसे महत्वपूर्ण अपने-अपने अहं को त्याग 'मैं-तू' का वाद छोड़ 'हम' शब्द को आत्मसात करने की आवश्यकता होती है। सात जन्मों के सफर का फलसफा पहले ही जनम में बोझ न बन बैठे, रिश्तों में बिखराव न आए व संबंध सतत ऊर्जावान बने रहें, इसलिए निम्न बातों की एहतियात बरतना आवश्यक है।