शर्मसार स्टेचू ऑफ लिबर्टी? शर्मसार होते हम...

डॉ. छाया मंगल मिश्र
पत्नी को कैसे काबू करें? 16.5 करोड़ बार सर्च किया गया 
 
‘यूं ही नहीं कहती मैं कि जिस धरती पर औरतों को ‘इंसान’मानने के लाले पड़े हुए हों वहां नारीमुक्ति/ स्वतंत्रता का ढोल पीटना केवल कान फोड़ता है’
 
कौन नहीं जानता स्टेचू ऑफ लिबर्टी को? अमेरिका की शान और न्यूयार्क की जान है। सभी जानते हैं कि अमेरिका के न्यूयार्क में स्थित स्टेचू ऑफ लिबर्टी के हाथ में स्थित मशाल  विश्व में नारी-मुक्ति की चेतना का प्रकाश फ़ैलाने का प्रतीक है... 
 
 ताम्बे की बनी, सोने की मशाल लिए, 225 टन भारी इस मूर्ति के मुकुट में 7 किरणें बनी हैं जो सात महाद्वीपों को दर्शातीं हैं. पैरों के पास जंजीरों के सांकल रूपी टुकड़े भी पड़े हैं, जो उत्पीड़न, दमन, जुल्म, अत्याचार की प्रथाओं को तोड़ने का प्रतीक है. दूसरे हाथ में पकड़ी हुई तख्ती पर अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस 4 जुलाई 1776 अंकित है। और तो और 1871 से संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था का दर्जा हासिल किया हुआ है। जो वैश्विक अर्थव्यवथा का एक चौथाई है,वहां अमेरिकी महिलाओं ने 122 करोड़ बार सर्च किया कि -मदद करो, वो मुझे नहीं छोड़ेगा। 1.07 करोड़ बार सर्च किया - वह मुझे मार डालेगा. 32 करोड़ बार–वह मुझे मारता है।
 
और अमेरिकी पुरुष सर्च कर रहे थे - 16.5 करोड़ बार - पत्नी को कैसे काबू करें? उन्हें प्रताड़ित कैसे करें कि किसी को पता न चले। 
 
न्यूजीलैंड की ओटागो युनिवर्सिटी की स्टडी ऐसा ही लज्जाजनक सच कह रही है। यह शोध कैटरिना स्तेंदिश ने किया जो जर्नल टेलर एंड फ्रांसिस में प्रकाशित हुआ. 2020 में यह दर 31% से बढ़ कर 106% तक पहुंच गई है।
 
और हमारे यहां भारत में तो आलम ही अलग है। हमारे तो पुरखे ही लिख गए हैं-
 
गर्ग संहिता के अनुसार-
 
दुर्जनाःशिल्पिनो दासा दुष्टाश्च पटहा: स्त्रियः
ताडिता मार्दवं यान्ति न ते सत्कार भाजनं.
 
दुर्जन, शिल्पी, दास, दुष्ट, ढोल तथा स्त्रियां ताड़ित होने पर मृदु होते हैं। वे सत्कार योग्य नहीं हैं।तो परिणाम यह है कि-
 
राष्ट्रीय महिला आयोग को मिलने वाली घरेलू हिंसा की शिकायतों की संख्या में 2019 के मुकाबले वृद्धि देखने को मिली।आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में आयोग को घरेलू हिंसा से संबंधित 2,960 शिकायतें मिली थीं जबकि 2020 में 5,297 शिकायतें प्राप्त हुईं, लगातार जारी हैं।
 
महाकवि तुलसीदास जी की कथनी तो ज्ञात है ही. फ़ारसी के शेख सदी की भी सुनें-
 
जनो अस्पो पिसरह चहारह ग़ुलाम,
गुनह बगुनह कफ़स कफ़्स बायद मुदाम.
 
अर्थात्- स्त्री, घोड़े और दास को ‘अपराधी-निरपराधी’कोड़े लगाने चाहिए।
 
 देखिये न आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में आयोग को महिलाओं के विरुद्ध किए गए अपराध की कुल 19,730 शिकायतें मिलीं जबकि 2020 में यह संख्या 23,722 पर पहुंच गई। लॉकडाउन खत्म हो कर दूसरी बार लागू हो गया अभी भी आयोग को हर महीने महिलाओं के विरुद्ध अपराध की दो हजार से अधिक शिकायतें मिल रही हैं जिनमें से लगभग एक चौथाई घरेलू हिंसा से संबंधित हैं।
 
चलिए, गुजराती लोकोक्ति देखिए-
 
धबके भैंस दूध दे, धबके छोरुं छानुं रहे.
धबके ज्वार बाजरी, धबके नार पाधरी.
 
मतलब- मार से भैंस दूध देती है, मार से बच्चे शांत रहते हैं, मार से ज्वार-बाजरा साफ़ होता है, मार से नारी सीधी होती है।
 
आश्चर्य किस बात का कि राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2021 से 25 मार्च 2021 के बीच महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की 1,463 शिकायतें प्राप्त हुईं। आर्थिक असुरक्षा, तनाव में वृद्धि, वित्तीय समस्याएं और परिवार की ओर से मिलने वाले भावनात्मक समर्थन की कमी, घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी का कारण हो सकते हैं। घरेलू हिंसा की शिकायतों में वृद्धि का एक कारण यह भी हो सकता है कि महिलाओं में अब जागरूकता बढ़ी है और वे इसके बारे में बात करने लगी हैं।
 
विकसित राष्ट्रों के सिरमौर अमेरिका जैसे देश में यदि आज “स्टेचू ऑफ लिबर्टी” शर्मसार है तो हमारे जैसे (तथाकथित) विकासशील(?) देश तो विरासत में ये मनमाने, खुद के बनाए, घटिया अधिकार पाए हुए हैं। भारत माता खुद भी शर्मसार है. शर्मिंदगी भी कितनी घृणित, अश्लील, कुत्सित, गलीज होती है ये तो इस कोरोना काल के लॉकडाउन से सिद्ध हो चला है....
 

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