स्‍पेस है सबके लिए जरूरी

-मंगला रामचंद्र

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किसी भी रिश्ते में कितना आगे बढ़ना है, कितना सहज रहा जाए, ये उस रिश्ते पर निर्भर करता है। इस तरह के संतुलन से 'स्पेस' बनता है जो व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन का काम करता है, जिससे लोग साथ रहते हुए भी घुटन महसूस नहीं करते।

क्या है स्पेस? इसका अर्थ क्या है? सीधे-साधे शब्दों में इसका अर्थ जगह से है। भीड़ में आदमी का दम घुटता है जब भी जगह या स्पेस बनाने की बात होती है।

मोटे तौर पर जगह बनाने को भौतिक रूप से आँका जाता है। मन में जगह बनाने के लिए काफी कवायद की जाती है। चाहे उन्नति के रास्ततय करने को बॉस के दिल में जगह बनानी हो या जीवन के रास्ते फलाँगने में हमराही का चुनाव करना हो। साथ के दूसरे लोगों के मन में जगह बनाने की बात भी कम मायने नहीं रखती। अगर जीवन को प्रशस्त करना हो, कुछ हासिल करना हो तो हर व्यक्ति को जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर इस तरह की कवायद करनी ही पड़ती है। यह एक तरह का सामंजस्य है जो इंसान अधिकांशतः इच्छापूर्वक करता है। ऐसे हालात में दोनों पक्ष साधारणतया संतुष्ट रहते हैं। यही सामंजस्य जीवन रूपी गाड़ी की 'ओवर हॉलिंग' कर के सरलता से दौड़ने में मदद करती है।

लेकिन क्या कभी रिश्तों के बीच 'स्पेस' देने की बात को हम उतना महत्व देते हैं? शायद सोचते भी नहीं हैं। हर रिश्ते को निभाने में एक
केवल बड़ों को ही नहीं, छोटे बच्चों को भी ऐसे संतुलन की दरकार होती है। कितनी ही बार माँ के अत्यधिक लाड़-प्यार या अनुशासन में बच्चा अपने आपको घुटता हुआ महसूस करता है
संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है। किसी भी रिश्ते में कितना आगे बढ़ना है, कितना सहज रहा जाए, ये उस रिश्ते पर निर्भर करता है। इस तरह के संतुलन से 'स्पेस' बनता है जो व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन का काम करता है, जिससे लोग साथ रहते हुए भी घुटन महसूस नहीं करते। पति-पत्नी के माता-पिता या बच्चों के साथ कितना भी नजदीकी रिश्ता क्यों न हो यह 'स्पेस' आवश्यक है।

केवल बड़ों को ही नहीं, छोटे बच्चों को भी ऐसे संतुलन की दरकार होती है। कितनी ही बार माँ के अत्यधिक लाड़-प्यार या अनुशासन में बच्चा अपने आपको घुटता हुआ महसूस करता है। ऐसा इसलिए होता है कि माँ अपने वात्सल्य और ममता को उड़ेलते हुए बच्चे पर अपना आधिपत्य मानने लगती है। इसी तरह पति-पत्नी या अन्य संबंधों मे भी जब तक बंधन स्नेह पर आधारित होते हैं, दोनों स्वतंत्रता महसूस करते हैं। जहाँ एक-दूसरे पर अधिकार या हक जताने वाली बात होने लगती है तो घुटनभरा वातावरण पैदा हो जाता है। अहं का टकराव, दमन और भी न जाने क्या-क्या अनचाहा महसूस होता है। ऐसा संवेदना की कमी से होता है।

स्पेस देने में संवेदना की भूमिका बहुत अहम है। आप संबंधित व्यक्ति से मन से, दिल से जुड़े हैं पर उस पर हावी नहीं हैं, ये भाव होना चाहिए। स्पेस का अर्थ दूरी से लगाकर तटस्थ नहीं होना है। तटस्थ होने का अर्थ दूरी बनाकर उस व्यक्ति के किसी के किसी मामले में रुचि नदिखाना होता है, जबकि स्पेस देने में यह जताना होता है कि संबंधित व्यक्ति पर बिना भार बने, लदे बिना हम उसके दुःख-सुख में सदैव साथ हैं। खासकर दुःख में बनते कोशिश मदद करना, वो भी बिना हावी हुए। अँग्रेजी के पाँच अक्षरों से बना यह शब्द 'स्पेस' रिश्तों में मिठास बनाए रखने में जादू की गोली का काम करता है। इसे व्यवहार में अपनाकर हम महसूस कर सकते हैं कि बिना अधिक मशक्कत के प्राकृतिक खुशी मिल रही है। साथ ही जीवन के अनेक तनावों से छुटकारा भी मिलता है।