नागा साधुओं के विभिन्न स्वरूपों की झलक देती प्रदर्शनी

नई दिल्ली। संगम का तट, कल्पवास में रहने वाले लोग और रहस्यों से भरी नागा साधुओं की दुनिया को करीब से देखने और कैमरे में उतारने वाली शालिनी माहेश्वरी ने दुनिया से विरक्त होकर अपने आप में मगन रहने वाले इन साधुओं के विभिन्न स्वरूपों और संवेदनाओं को बेहद रंगबिरंगी और शोख तस्वीरों के माध्यम से पेश किया है।
 

 
पेशे से फोटो पत्रकार शालिनी ने अपने जीवन में 12 साल का कल्पवास किया और इन नागा साधुओं की दुनिया से रूबरू हुईं। ललित कला अकादमी में जारी ‘इंप्रैशन एंड एक्सप्रैशन : ए जर्नी विद कागज की नाव’ प्रदर्शनी में शालिनी के संग्रह की विषयवस्तु यही नागा साधु हैं।
 
भारत में लोगों का नागा साधुओं से परिचय कुंभ मेले से है और कुंभ मेलों में शाही स्नान के दौरान ये साधू अपनी पूरी सजधज और ठसक के साथ निकलते हैं। हालांकि तस्वीरों को देखकर यह आभास जरूर मिलता है कि शालिनी ने उनके वैभव और प्रभुत्व को दिखाने से ज्यादा उनकी गहन संवेदनाओं उभारने का प्रयास किया है।
 
अपने इस संग्रह को शालिनी अपना अब तक का सबसे अच्छा काम बताती हैं और कहती हैं कि यह उनकी 12 साल की तपस्या का परिणाम है। शालिनी ने बताया, ‘देखिए संवेदनाएं मुझे अपनी ओर खींचती हैं और साधुओं में भी बहुत जबरदस्त संवेदनाएं होती हैं। अलग-अलग समय में उनकी अभिव्यक्ति अलग-अलग प्रकार की होती है। इन 12 साल के दौरान मुझे बहुत से साधुओं के साथ काम करने का मौका मिला, जिससे मैं उनके जीवन के हर रंग को इतने नजदीक से जान पाई।’ 
 
प्रदर्शनी में नागा साधुओं की विभिन्न मुद्राओं के चित्र हैं, जिनमें जटाओं में चंद्रमा सजाए साधु, एक साधु के कंधे पर खड़े बाल साधु, दुनिया से विरक्ति लेने से पहले खुद का पिंडदान करते साधु, त्रिशूल, स्फटिक, गदा, मोतियों-फूलों की माला से श्रृंगार किए साधु और कैमरा हाथ में थामे नागा साधुओं के चित्र शामिल हैं। बकौल शालिनी नागा साधुओं के साथ काम करने में सबसे ज्यादा तकलीफ उन्हें उनके मूड को भांपने में आई क्योंकि कभी वे हंसमुख होते हैं तो कभी काफी उद्दंड भी हो जाते हैं और अक्सर वह फोटोग्राफरों को अपने नजदीक आने या चित्र लेने की अनुमति नहीं देते हैं और ऐसे में उनके साथ काम करना मुश्किल होता है।
 
शालिनी ने बताया कि इस दौरान उन्हें साधुओं के कुछ रोचक तथ्य भी ज्ञात हुए, जैसे कि साधु बनने से पहले वे स्वयं का पिंडदान करते हैं ताकि भविष्य में इस कार्य की आवश्यकता नहीं पड़े। वहीं कुछ परिवार अपने बच्चों तक को नागा साधु बनने भेज देते हैं और ऐसा वह अपने परिवार की उस परंपरा को जीवित रखने के लिए करते हैं, जिसमें उनके परिवार से कभी ना कभी कोई नागा साधु रहा होता है।
 
शालिनी ने इस प्रदर्शनी के साथ अपनी कुछ कविताओं को भी प्रदर्शित किया है, जिसके लिए वह कहती हैं कि एक तरफ उन्होंने अपने चित्रों के माध्यम से परंपरा को दिखाने का प्रयास किया है तो वहीं कविताओं के माध्यम से वह आधुनिकता को दर्शाने की कोशिश कर रही हैं।
 
यह प्रदर्शनी अकादमी में 14 मार्च तक चलेगी। (भाषा) 

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