ऋद्धि-सिद्धि एवं संपदा प्राप्ति हेतु

हेतु- ऋद्धि-सिद्धि एवं संपदा की प्राप्ति होती है।

भक्तामर प्रणत मौलि-मणि-प्रभाणामुद्योतकं दलित-पाप-तमो वितानम्‌ ।
सम्यक्‌ प्रणम्य जिनपादयुगं युगादौ वालम्बनं भवजले पततां जनानाम्‌ । (1)

जिनके चरणों में झुके हुए देवों के मुकुट की मणियाँ इतनी तो झिलमिला रही हैं कि मानों पाप के तिमिर को चीर डालती हों... संसार समुद्र में डूबते हुए जनों के लिए सहारा रूप वैसे आदिनाथ तीर्थंकर के चरण-कमल को मैं हार्दिक प्रणाम करता हूँ। (प्रणाम करके स्तवना करूँगा।)

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो अरिहंताणं णमो जिणाणं ह्राँ ह्रीं ह्रूँ ह्रौं ह्रः
असिआउसा अप्रतिचंक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं स्वाहा।

मंत्र- ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रूँ श्रीं क्लीं ब्लूँ क्रौं ॐ ह्रीं नमः

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