पूरी दुनिया ईश्वर की लीला से अभिभूत है। हृदय अंचभित है और अनंत ऊर्जा से भरा सृष्टि का कोना-कोना उसके शाश्वत प्रेम से पल्लवित है। यूँ तो शाश्वत प्रेम की सबकी अपनी-अपनी परिभाषा है। मगर जो कभी न मिटे वह शाश्वत प्रेम कहलाता है।
प्रभु तथा प्रभु द्वारा रचित सृष्टि से प्रेम करना और सच्चे मन से उनकी उपासना करना ही शाश्वत प्रेम का सार्थक रूप है। इसकी अनुभूति का वर्णन वही कर सकता है जिसने इसको पाया हो। दुनिया में आज प्रेम के मायने बदल गए हैं। आज आकर्षण को भी प्रेम का नाम दिया जाता है किंतु शाश्वत प्रेम को समझने के लिए वक्त और धैर्य की जरूरत है, जो आज के युग में कम ही दिखती है। इसलिए आज शाश्वत प्रेम को पाने वाले भी भी कम ही हैं।
यह प्रेम कुछ माँगता नहीं सिवाय मन के समर्पण के। जहाँ आप सच्चे मन से किसी के प्रति समर्पित होते वहीं से शाश्वत प्रेम उपजता है। यह प्रभु और प्रभु द्वारा रचित समस्त संसार के प्रति अनुभव किया जा सकता है। यह तमाम भौतिक सुखों से परे सीधे आत्मा से जुड़ता है।
स्वयं ईश्वर भी इस शाश्वत प्रेम को महसूस करने के लिए अलग-अलग रूपों में धरा पर अवतरित होते हैं। यही वह डोर है, जो हमें एक-दूसरे से और फिर ईश्वर से बाँधती है।