लोक सेवा से समाज में जहां अपना स्वार्थ सिद्ध होता है, वहीं समाज में प्रधानता प्राप्त होती है। वस्तुतः सेवा निःस्वार्थ भाव से होनी चाहिए। जो व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से दुखियों की सेवा करता है, वह लोकप्रिय बन जाता है।
ईसा ने कहा है- 'जो तुम में सबसे बड़ा होगा वह तुम्हारा सेवक होगा।'
समाज की प्रवृत्ति ऐसी है कि यदि आप दूसरों के काम आएंगे तो समय पड़ने पर दूसरे भी आपका साथ देंगे। जो व्यक्ति समाज के लिए आत्म-बलिदान देता है, समाज उसे अमर बना देता है। अतः लोक सेवा से मनुष्य की एक सबसे बड़ी आकांक्षा पूर्ण होती है, वह है यश पाने की कामना।