भयमुक्त समाज का निर्माण

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एक बार महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ के दरबार में पहुँचे। महाराजा दशरथ ने दंडवत प्रणाम कर कहा कि महर्षि आज मेरा अहोभाग्य है जो आप ऐसे समय यहाँ पधारे, जब मेरे चारों बालक यहाँ उपस्थित हैं। आपके आशीर्वाद से हम कृतार्थ हो गए। महात्मन्‌! आज्ञा दीजिए मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूँ!

दशरथ के वाक्यों को सुनकर महर्षि विश्वामित्र बोले- महाराज दंडकारण्य सहित समस्त पूर्वोत्तर सीमा कू्र अत्याचारियों से घिर चुकी है। गोदावरी के तट पर स्थित पंचवटी एवं उत्कल का ताड़क वन आतंकवादी राक्षसों की छावनी बन चुका है, जहाँ से सारी आतंकी गतिविधियाँ संचालित हो रही हैं।

ताड़क वन की परिधि में मेरा आश्रम नित्य प्रति इनके हमलों से त्रस्त हो चुका है। निरीह लोग मारे जा रहे हैं। अतः आप अपने श्रेष्ठ पुत्र श्रीराम और छोटे पुत्र लक्ष्मण को मेरे साथ भेज दीजिए ताकि मैं इन्हें धनुर्विद्या के साथ तपोबल भी प्रदान कर इन आतंकियों को समाप्त कर सकूँ।

विश्वामित्र की इस माँग को सुनकर दशरथ ने कहा- मैं अपने छोटे-छोटे बालकों को दुर्दांत राक्षसों से भिड़ने कैसे भेज सकता हूँ।
विश्वामित्र ने महाराज दशरथ से कहा, आप चिंता न करें राजन्! मैं श्रीराम और लक्ष्मण को ही ले जाऊँगा। आपको यह मालूम नहीं है कि आपकी सीमाएँ अत्यंत असुरक्षित हो चुकी हैं।

मैं समझता हूँ ऐसी व्यामोह की स्थिति में पड़ा कोई राजा इस कार्य में सफल नहीं हो सकता। अतः मैं एक नए इतिहास का सृजन करूँगा, जिसकी भूमिका राम और लक्ष्मण के अजेय धनुष्य बाणों रची जाएगी। महाराजा दशरथ किसी अनहोनी के कारण अंदर से काँप उठे। इतने में उनकी दृष्टि पास में बैठे गुरुदेव वशिष्ठ पर पड़ी।

यह क्या, गुरुदेव वशिष्ठ ने दृष्टिपात मात्र से दशरथ को विश्वास दिला दिया कि कोई अनिष्ठ नहीं होगा। उसके बाद महाराजा दशरथ ने महर्षि विश्वामित्र के साथ अपने दोनों पुत्रों को यज्ञ रक्षार्थ भेज दिया। महर्षि विश्वामित्र के साथ ताड़क वन में जाकर श्रीराम और लक्ष्मण ने अस्त्र-शस्त्रों का अमोघ ज्ञान प्राप्त किया, वहीं धर्म शास्त्रों का गहन ज्ञान भी प्राप्त किया।

ताड़का, सुबाहु सहित दुर्दांत राक्षसों का वध कर भारत की तत्कालीन पूर्वोत्तर सीमाओं को आतंकरहित कर दिया। साथ ही, समाज भयमुक्त करके राक्षस राज को समाप्त कर दिया।

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