भगवान महावीर केवल उपदेश देते थे और उनके प्रमुख शिष्य (गणधर) उसे सभी को समझाते थे, क्योंकि तब महावीर की वाणी को लिखने की परंपरा नहीं थी। उसे सुनकर ही स्मरण किया जाता था इसीलिए उसका नाम श्रुत था। जैन समाज में इस दिन का विशेष महत्व है। इसी दिन पहली बार जैन धर्म ग्रंथ लिखा गया था।