राजिम कुंभ में भारतीयता के दर्शन

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राजिम अर्धकुंभ महोत्सव 2011 की गरिमामयी शुरुआत माघ पूर्णिमा के दिन धार्मिक आस्था और विश्वास के साथ जगदगुरु काँचीकामकोटि पीठ के महाराज जयेंद्र सरस्वती के आशीर्वाद के साथ हुई।

पंद्रह दिनों तक चलने वाले राजिम अर्धकुंभ महोत्सव 2011 की शुरुआत भगवान राजीवलोचन की पूजा-अर्चना के साथ हुई। विस अध्यक्ष कौशिक ने कहा कि छत्तीसगढ़ की धरती पर भगवान राजीवलोचन की कृपा हमेशा बनी रही है। उनके आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ खुशहाली के रास्ते पर जा रहा है।

अपने आशीर्वचन में जयेंद्र सरस्वती ने कहा कि माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि का समय अत्यंत पुण्यदायी होता है। इस दौरान स्नान करने से तन-मन की शुद्धि और सभी पापों का नाश होता है। देश में होने वाले चार कुंभों के अलावा राजिम कुंभ की ख्याति भी देश-दुनिया में फैली है। महानदी पूरे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी है। इस नदी के तट पर अनेक पवित्र तीर्थस्थल है जिनका पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है और राजिम कुंभ मध्य भारत का प्रयाग बन चुका है।

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पर्यटन मंत्री अग्रवाल ने कहा कि देशवासियों को कुंभ के लिए 12 साल इंतजार करना पड़ता था लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रतिवर्ष होने वाले राजिम कुंभ की शुरुआत की जो धर्म, कला और संस्कृति की त्रिवेणी बन चुका है। साधु संतों के आशीर्वाद से राजिम कुंभ दिनोंदिन प्रसिद्धि पा रहा है।

शासन से ज्यादा धर्म मानव समाज को अनुशासित रखता है और साधु-संतों के प्रवचन उस अमृत के समान है जिससे मानव जीवन सफल होता है। राजिम कुंभ ने देश-विदेश में छत्तीसगढ़ की पहचान बनाई है। राजिम मेला अब कुंभ के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है।

छत्तीसगढ़ विनम्र धरती है और राजिम उसकी प्रणम्य धरती है। इस धरती पर कुंभ की शुरुआत होना छत्तीसगढ़वासियों के लिए सौभाग्य की बात है। संत कवि पवन दीवान ने कहा कि ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का प्रतीक बन चुके राजिम कुंभ में देश की एकता और भारतीयता के दर्शन होते हैं।

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