यहां पर शिवलिंग को जिंदा केकड़ा अर्पित करने से मिलती है रोग से मुक्ति

गुरुवार, 19 जनवरी 2023 (12:44 IST)
At this Shiva temple in Surat, devotees offer live crabs : भारत में शिवजी के लाखों शिवलिंग होंगे और सभी की अपनी रोचक कहानियां और उनसे जुड़ी परंपराएं भी हैं। हजारों शिवलिंग या शिव मंदिर की रोचक परंपराएं भी हैं। ऐसा ही एक शिव मंदिर हैं जहां पर शिवलिंग पर जीवित केकड़ा अर्पित करने की परंपरा है। यहां पर वर्ष में एक बार षटतिला एकादशी पर लोग केकड़ा अर्पित करने आते हैं।
 
यह मंदिर है गुजरात के सूरत जिले में उमरा गांव में और इस मंदिर का नाम है घेला महादेव मंदिर। षटतिला एकादशी पर लोग यहां पर जीवित केकड़ा अर्पित करते हैं। इस अवसर पर सुबह 6 बजे से रात के 12 बजे तक भक्तों के लिए मंदिर का द्वार खुला रहता है और केकड़े के साथ ही श्रद्धालु घी के कमल के दर्शन का लाभ भी प्राप्त करते हैं।
स्थानीय लोगों और पुजारी के अनुसार यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है। यहां स्थित रामनाथ मंदिर के स्थान और संपूर्ण क्षेत्र में हजारों वर्ष पूर्व जंगल था लेकिन यहां पर एक बार प्रभु श्रीराम पधारे थे। ऐसा ताप्ती पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। तभी से यह स्थान पवित्र माना जाता है। कहते हैं कि यहीं पर श्रीराम को अपने पिता दशरथ की जी मृत्यु का संदेश मिला था।
 
इस संदेश के बाद श्रीराम ने तापी नदी में ही अपने पिता के निमित्त तर्पण विधि करने का निर्णय लिया और दरिया देव से प्रार्थना की, जिसके बाद स्वयं दरिया देव ने ब्राह्मण का रूप धारण करके तर्पण विधि पूर्ण करवाई थी। मान्यता के अनुसार इसके बाद भगवान श्री राम ने एक तीर मारा और वहां से एक शिवलिंग प्रकट हुआ।
 
इस शिवलिंग की पूजा अर्चना और फिर तर्पण विधि की। कहते हैं कि तर्पण विधि के बाद ज्वार आने के कारण यहां बड़ी संख्या में केकड़े तैरकर इस जगह पर पहुंच गए थे। इसके बाद श्रीराम ने ब्राह्मणों को बताया कि इन सभी जीवों का उद्धार किया जाए और वरदान दिया कि कान के रोग से पीड़ित जो भी व्यक्ति यहां शिवजी को केकड़ा अर्पित करेगा उसे रोग से मुक्ति मिलेगी। इसके बाद श्रीराम नासिक चले गए थे।
 
मान्यता के अनुसार यहां लोग अपनी कान की बीमारी दूर करने के लिए दूर-दूर से आते हैं और मन्नत मांगते हैं। यहां वर्ष में एक बार ही लोग केकड़ा अर्पित करते हैं। हजारों केकड़े अर्पित किए जाते हैं। बाद में मंदिर के पुजारी यहां पर अर्पित किए गए केकड़े बिना किसी नुकसान पहुंचाए ताप्ती नदी के जल में छोड़ देते हैं। 

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