अयोध्या स्थित ब्रह्मकुंड साहिब है सिखों का पवित्र स्थल, जानिए 7 खास बातें

अनिरुद्ध जोशी
गुरुवार, 30 जुलाई 2020 (17:52 IST)
अयोध्या कई धर्मों की पुण्य भूमि बन चुकी है। हिन्दू के अलावा जैन, बौद्ध और सिखों की यह पवित्र भूमि है। यहां उक्त चारों भारतीय धर्म से जुड़े पविस्त्र स्थल मौजूद हैं। आओ जानते हैं सिख धर्म के पव्सित्र स्थल ब्रह्मकुण्ड साहिब के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
1. अयोध्या (Ayodhya) में मौजूद गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड साहिब (Sri Brahmakund) के दर्शन करने के लिए देश और दुनिया के कोने-कोने से सिख श्रद्धालु आते हैं।
 
3. कहते हैं कि सिख समुदाय के पहले गुरु नानकदेव, 9वें गुरु तेग बहादुर और 10वें गुरु गोविंद सिंह (guru gobind singh) ने यहां गुरद्वारा ब्रह्मकुंड में ध्यान किया था। पौराणिक कथा के मुताबिक इसी जगह के पास भगवान ब्रह्मा ने 5,000 वर्ष तक तपस्या की थी।
 
3. कहते हैं कि श्रीराम की नगरी अयोध्या में गुरु गोविंदसिंहजी के चरण पड़े थे तब संभवत: उनकी उम्र 6 वर्ष की थी। कहते हैं कि उन्होंने यहां राम जन्मभूमि के दर्शन करने के दौरान बंदरों को चने खिलाए थे।
 
4. गुरुद्वारे में रखी एक किताब के अनुसार मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ पटना से आनंदपुर जाते हुए दशम् गुरु गोविंद सिंह जी ने रामनगरी में धूनी रमाई थी और अयोध्या प्रवास के दौरान उन्होंने मां एवं मामा के साथ रामलला का दर्शन भी किया था।
 
5. गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में मौजूद एक ओर जहां गुरु गोविंद सिंह जी के अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें हैं तो दूसरी ओर उनकी निहंग सेना के वे हथियार भी मौजूद हैं जिनके बल पर उन्होंने मुगलों की सेना से राम जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध किया था। कहते हैं कि मुगलों से युद्ध लड़ने आई निहंग सेना ने सबसे पहले ब्रह्मकुंड में ही अपना डेरा जमाया था। गुरुद्वारे में वे हथियार आज भी मौजूद हैं जिनसे मुगल सेना को धूल चटा दी गई थी। गुरुजी ने अयोध्या की रक्षार्थ निहंग सिखों का बड़ा-सा जत्था भेजा था जिन्होंने राम जन्मभूमि को युद्ध करके आजाद करवाया और हिन्दुओं को सौंपकर वे पुन: पंजाब वापस चले गए थे।
 
6. सरयू तट पर स्थित ब्रह्मकुंड गुरुद्वारे के पास ही ब्रह्माजी का मंदिर और दुखभंजनी कुआं है। मान्यता है कि अयोध्या प्रवास के दौरान सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानकदेवजी ने इसी कुएं के जल से स्नान किया था। सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानकदेवजी ने विक्रमी संवत् 1557 में यहां उपदेश दिया था।
 
7. विक्रमी संवत् 1725 में असम से पंजाब जाते समय नवम् गुरु तेगबहादुरजी ने यहां माथा टेका और 2 दिन तक अनवरत तप किया था। सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह भी संवत् 1726 में यहां पधारे थे। उनका खंजर, तीर और तस्तार चक्र यहां निशानी के तौर पर आज भी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।

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