1. पांडव करते थे इस मूर्ति की पूजा और लगाते थे भोग : मंदिर से जुड़ी किंवदंतियां हैं कि वनवास के दौरान पांडव, श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करते और उनको भोग लगाते थे। उनका वनवास यही तिरुवरप्पु में समाप्त हुआ और मछुआरों के अनुरोध पर उन्होंने इस मूर्ति को यहीं छोड़ दिया था। मछुआरों ने ग्राम देवता के रूप में वहां पर श्रीकृष्ण को पूजना प्रारंभ किया। लेकिन जब वे संकटों से घिर गए तब एक ज्योतिष ने बताया कि आप लोग पूजा ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हो। तब उन मछुआरों ने उस मूर्ति को एक समुद्री झील में विसर्जित कर दिया।