Ahoi ashtami vrat katha: अहोई अष्टमी की पौराणिक कथा

WD Feature Desk
बुधवार, 23 अक्टूबर 2024 (13:43 IST)
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Ahoi Ashtami Katha 2024 : वर्ष 2024 में अहोई अष्‍टमी का पर्व 24 अक्टूबर, दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। यह देवी पार्वती और अहोई माता की पूजा करने का दिन हैं। अहोई अष्टमी व्रत के दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, खुशहाल जीवन तथा तरक्की के लिए निर्जला रहकर यह व्रत -उपवास रखती हैं। इस दिन दिनभर व्रत रखकर रात में तारों को देखने तथा उन्हें अर्घ्य देने के पश्चात व्रत खोला जाता है। 
 
Highlights 
यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं अहोई अष्टमी व्रत की कथा...
अहोई अष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। 
 
दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। 
 
मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु बोली- मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें।
 
तब सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। 
 
तब पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। 
 
इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है, इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। इस पर छोटी बहू कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। 
 
गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना और किसी अप्रिय अनहोनी से बचाना। इसी उद्देश्य से महिलाएं अपनी संतान की खुशी के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करती है। 

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