मार्गशीर्ष चतुर्थी कथा: गणाधिप संकष्टी का व्रत इस कथा के बिना पूर्ण नहीं होता है, यहां पढ़ें

WD Feature Desk

सोमवार, 18 नवंबर 2024 (11:07 IST)
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Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2024 Katha : गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत अगहन मास की चौथ तिथि पर रखा जा रहा है। इस व्रत का पूर्ण फल आपको तब तक प्राप्त नहीं हो सकता, जब तक इस पौराणिक कथा को पढ़ा या सुना जाएं।

Highlights
आइए जानते हैं इस व्रत की संपूर्ण कथा...

मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की कथा के अनुसार प्राचीन काल में त्रेतायुग में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे। वे राजा आखेट प्रिय थे। एक बार अनजाने में ही उन्होंने एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का आखेट में वध कर दिया। 
 
उस ब्राह्मण के अंधे मां-बाप ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्रशोक में मर रहे हैं, उसी भांति तुम्हारा भी पुत्रशोक में मरण होगा। इससे राजा को बहुत चिंता हुई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में अवतार लिया। भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुई। 
 
पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को गए, जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षस व राक्षसियों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने सीता जी का अपहरण कर लिया। सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव के साथ मैत्री की। तत्पश्चात सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए। ढूंढते-ढूंढते वानरों ने गिद्धराज संपाती को देखा। 
 
इन वानरों को देखकर संपाती ने पूछा कि कौन हो? इस वन में कैसे आए हो? तुम्हें किसने भेजा है? यहां पर तुम्हारा आना किस प्रकार हुआ है। संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु के अवतार दशरथ नंदन राम जी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आए हैं। वहां पर उनकी पत्नी सीता जी का अपरहण कर लिया गया है। हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां है?
 
उनकी बात सुनकर संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो। जानकी जी का जिसने हरण किया है और वह जिस स्थान पर है वह मुझे मालूम है। सीता जी के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है। यहां से थोड़ी ही दूर पर समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है। वहां अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हुई है। 
 
रावण द्वारा अपह्रत सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं। मैं आपसे सत्य कह रहा हूं कि सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है। अतः उन्हें वहां जाना चाहिए। केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुद्र लांघ सकते हैं। अन्य कोई भी इस कार्य में समर्थ नहीं है। संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उस पार जाने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं? 
 
संपाती ने हनुमान जी की बात सुनकर उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिए। उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लेंगे। संपाती के आदेश से संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को हनुमान जी ने किया। और इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में समुद्र को लांघ गए। इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।

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