दक्षिण में विकास की होड़

राजेश शर्मा
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दक्षिण में आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक व केरल विकास की नई इबारत लिख रहे हैं। लंबी तटरेखा और आसान आवागमन के साधन होने से अन्य प्रदेशों के लोग इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में रहते हैं। यही कारण है कि बेंगलुरू में छः भाषाओं की फिल्में प्रदर्शित होती हैं,तो कोयंबटूर में मराठी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषा बोलते लोग मिल जाएँगे। दुनिया की तमाम नामचीन कंपनियों ने यहाँ डेरा डाल रखा है। इसके पीछे यहाँ का व्यावसायिक वातावरण मुख्य वजह है। विदेशी निवेश को लुभाने के लिए इन राज्यों में आपस में होड़ है। यहाँ कुशल मानव श्रम मौजूद है तो मजबूत बुनियादी ढाँचा भी। इधर इन राज्यों का दूसरा स्याह पक्ष अमीरी और गरीबी के बीच गहरी खाई होना है। स्वाधीनता के बाद यहाँ की सरकारों ने औद्योगिकीकरण पर तो पर्याप्त ध्यान दिया लेकिन आम आदमी की मूलभूत सुविधाओं को नजरअंदाज करके रखा। कोयंबटूर में आज भी सप्ताह में दो बार ही पानी मिलता है।

कन्याकुमारी की तस्वीर बीते एक दशक में बदल चुकी है। पर्यटन उद्योग ने मछुआरों के इस गाँव की तकदीर बदल दी है। सेलम में स्टील की चमक दिखाई देती है। सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) ने इसे स्टील सिटी के नाम से अलग पहचान दी है। इसी तरह श्रीपेरंबदुर औद्योगिक विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है। सुर्खियों में यह शहर 18 साल पहले तब आया था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की एक सभा के दौरान हत्या कर दी गई थी। अब यहाँ हुंडई और सेंट गोबेन की स्थापित इकाइयों ने औद्योगिक माहौल बनाया है।

भारत का चौथा महानगर चेन्नई तेजी से देश के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है। यहाँ तकरीबन एक हजार इकाइयों का जाल सौ किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है, जिनके हजारों कर्मचारियों को दिनभर सैकड़ों सफेद बसें दौड़ती नजर आती हैं। सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले शहर बेंगलुरू में प्रवासियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिसने सुविधाओं के ताने-बाने को उधेड़ दिया है। शहर में बढ़ती समस्याओं के बावजूद हर वर्ष कई कंपनियाँ ठिकाना बनाने के लिए शहर व आसपास के क्षेत्र को खंगाल रही हैं।

उधर कर्नाटक के शहर मैसूर के विकास में जलवायु का अहम योगदान है। इंफोसिस ने पाँच साल पहले मैसूर से अपना कारोबार शुरू किया, तब से नगरीय प्रशासन और राज्य सरकार ने विकास को अत्यधिक गंभीरता से लिया। वैसे तो आज भी मैसूर पर्यटक स्थल के तौर पर जाना जाता है।

आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद जैसे महँगे शहर में आईटी पार्क ने नई दुनिया गढ़ दी है। चारमीनार की धूल और शोर से परे यहाँ एक दूसरी ही भाषा बोली जाती है, वह भाषा जो माइक्रोसॉफ्ट के क्षेत्र में आसानी से समझी जाती है। इस हाईटेक सिटी पर आतंकवादियों की दशहत का असर दिखाई नहीं देता, लेकिन सत्यम घोटाले ने लोगों को बेचैन जरूर कर दिया है।

विकास के मामले में देश के अन्य सूबों से अव्वल गोआ अब विदेशियों की पसंद बनता जा रहा है। वे यहाँ अब बसते भी जा रहे हैं। गोआ की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर ही निर्भर है, जिस पर पिछले 22 साल से चल रहा कोंकणी आंदोलन खतरा बनता दिख रहा है। बीते 15 सालों में यहाँ की संस्कृति में बड़ा बदलाव आया है। लोगों खासकर युवाओं ने अँगरेजियत का चोला ओढ़ लिया है। रहने-खाने का तरीका विदेशी हो गया है।

इधर आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले के हेमलकसा गाँव से विकास कोसों दूर है। खुदा खैर करे कि विख्यात समाजसेवी बाबा साहब आमटे के बेटे डॉ. प्रकाश आमटे ने आदिवासियों के इस गाँव को पिछले 35 साल से गोद ले रखा है। डॉ. प्रकाश इन आदिवासियों के स्वास्थ्य की दिशा में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें वर्ष 2008 में मैग्सेसे अवॉर्ड दिया गया था, जो उनके काम के आगे बौना लगता है।