मैं भेज रहा हूँ तुम्हें फिर से तितलियों के पंखों सा स्पर्श, अमलतासी फूलों-सी सजी तुम और उस ओढ़नी के सितारों का टूट-टूट कर गिरना मुझे याद है।
और उसके रंग धीरे-धीरे उड़ना, फटना उसका चिन्दी-चिन्दी भी। याद है मुझे ढकना तुम्हें एक बादल-सा क्षणिक मिटाना, अलग होना और तिर जाना कहीं दूर लाने कुछ बूँदें बस तुम्हारे लिए। सुनो, बचाए रखना अपने आपको उन झंझावातों से जो तुम्हारे फटे आँचल में तुम्हें झाँकने का यत्न करें।
मैं जल्दी आऊँगा फिर से समेटने तुम्हें अपने शब्दों में और ले चलूँगा वहाँ जहाँ सब कुछ अपना है
सूरज, चाँद, धरती, आकाश, अपना फूस का घर, मैं और तुम और वही फटा अँगौछा, जिसमें सजी तुम हँसती खिलखिलाती थी एक दुल्हन की तरह