एक मैंने जिसको कभी भुलाया नहीं याद करने पे याद आया नहीं। अक्से-महताब से मुशाबह है तेरा चेहरा तुझे बताया नहीं। तेरा उजला बदन न मैला हो हाथ तुझ को कभी लगाया नहीं
ज़द में सरगोशियों के फिर तू है ये न कहना तुझे जगाया नहीं। बाख़बर मैं हूँ तू भी जानता है दूर तक अब सफ़र में साया नहीं।
दो इस तरह ठहरूँ या वहाँ से सुनूँ मैं तेरे जिस्म को कहाँ से सुनूँ। मुझको आग़ाज़े-दास्ताँ है अज़ीज़ तेरी ज़िद है कि दरमियाँ से सुनूँ।
तीर ने आज क्या शिकार किया उसकी तफ़सील मैं कमाँ से सुनूँ। रात क्या कुछ ज़मीन पर बीती पहले तुझसे फिर आसमाँ से सुनूँ। कितनी मासूम-सी तमन्ना है नाम अपना तेरी ज़बाँ से सुनूँ।
तीन तेरे वादे को कभी झूठ नहीं समझूँगा आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा। देखने के लिए इक चेहरा बहुत होता है आँख जब तक है, तुझे सिर्फ़ तुझे देखूँगा। मेरी तन्हाई की रुस्वाई की मंज़िल आई वस्ल के लम्हे से मैं हिज्र की शब बदलूँगा। शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है सोचता रोज़ हूँ मैं घर से नहीं निकलूँगा। ताकि महफ़ूज़ रहे मेरे क़लम की हुरमत सच मुझे लिखना है मैं हुस्न को सच लिक्खूँगा।