यूँ वक्त-बेवक्त तुम दस्तक दिल पर दिया न करो दीये उम्मीदों के जलाकर रातों में आवाज दिया न करो। यूँ तो बातें बहुत तुम्हें आती हैं पर बातें दिल की तुमसे कही नहीं जाती हैं नजरों को भी बोलने दो कभी सदा होंठों से बात किया न करो। रातों में आवाज दिया न करो कई बार हमने ये आजमाया है नजरों को तुम्हारे इंतजार में पाया है खुशी मिलन में होती है मुझे भी पर दर्द बिदाई में इतना दिया न करो रातों में आवाज दिया न करो तब मुझे देखकर तुम्हारा छिप जाना। अब छिप कर मुझे देखने लग जाना ये इशारा ही बहुत है समझने को फिर चाहत से इंकार किया न करो रातों में आवाज दिया न करो।