मीरा का प्रेम, प्रेम की अंतिम व्याख्या है
कृष्ण से शुरू, कृष्ण पर समाप्त
मीरा के प्रेम में मीरा कहीं नहीं हैं
सिर्फ कृष्ण ही कृष्ण दृष्टव्य हैं।
मीरा के पास प्रेम में देने के अलावा
कृष्ण से लेना शेष नहीं है
मीरा का प्रेम अर्पण, समर्पण
और तर्पण का संयुक्त संधान है।
मीरा को कृष्ण से कुछ नहीं चाहिए
न प्रेम, न स्नेह, न सुरक्षा
न वैभव, न धन, न अपेक्षा
न उपकार न प्रतिकार।
मीरा के प्रेम की न परिधि है