मैंने तुम्हें कभी हिलते हुए नहीं देखा है उस वक्त भी जब तुम चित्र से बाहर होती हो बहुत ठहरी हुई सी जगह लगती है मुझे तुम्हारे चेहरे की सतह मुझे सोचना नहीं पड़ता है अपनी देह खोजने के लिए देखना भी नहीं पड़ता है इधर-उधर बेचैनी में प्रतीक्षा के तनाव के साथ- मैं अमूर्त हो जाता हूँ तुममें खोकर फिर शांत रहता हूँ घाटी की गोद में पड़े एक गोल सफेद पत्थर सा नदी की हल्की झिल्ली में तर-बतर ठंडा ध्यानमग्न और गतिमान।